विपश्यना साधक के लिए मृत्यु मंगल है, अमंगल नही । सुहवनी है, भयावनी नही। अभिनंदनीय है, तिरस्करणीय नही । जब समय पकता है और आयु संस्कार पुरे होते है तो शरीर-च्युति अवश्यंभावी है । नियती के इस अटूट नियम को कोई नही टाल पाता । परिपक…
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