बुद्ध और बिम्बिसार : कीचड़ में कमल खिला

बुद्ध और बिम्बिसार 🌹
कीचड़ में कमल खिला


वज्जियों की विशाल राजधानी वैशाली, जन-कोलाहल से भरपूर, जनाकीर्ण । एक तंत्रीयन होकर प्रजातंत्रीय राज्य, राज्य सभा के सभी सदस्य राजा के पद से सुशोभित; अतः राजनगरी उनके अनेक महलों से, कूटागारों से, पुष्करणियों से, उद्यानों से सुन्दर, सुशोभित। पुष्क रणियों में रात के समय कुमुद खिलते और दिन में कमल। उद्यानों में भिन्न-भिन्न प्रकार के पेड़ फलों और फूलों से लदे रहते; नगर की सुषमा में यह चार चांद लगाते थे। सारा वज्जी राष्ट्र धन-धान्य से परिपूर्ण था, अतः समस्त नागरी वातावरण विलास-वैभव की मादक तरंगों से तरंगित रहता था।
नगर के बाहर एक आम्रकुंज था। एक दिन प्रातःकाल उद्यान-रक्षक माली कुंज की रखवाली के लिए वहां पहुंचा तो यह देख कर अत्यंत विस्मित हुआ कि एक घने आम्र-वृक्ष के तले एक सद्यजात कन्या लेटी पड़ी है। जननी ने उसे पेड़ तले जना और मल-मूत्र की तरह छोड़ कर चली गई। इस परित्यक्ता बालिका की जननी सचमुच बड़ी कठोर-हृदया रही होगी। परित्यक्ता कन्या निश्चय ही किसी राजघराने की व्यभिचारिणी नारी की अवैध सन्तान थी अथवा किसी गणिका की अनवांछित पुत्री थी। उस मासूम बच्ची के चेहरे पर सौन्दर्य की आभा फूट रही थी। माली ने उसे उठा लिया और अपने घर ले आया। मालिनी निःसंतान थी, संतान की भूखी थी। बालिका को देखा तो उसके मन में वात्सल्य उमड़ आया। उसकी छाती भीग गई। उसने कन्या को अपनी छाती से लगा लिया और उसका मुख चूम लिया। कैसी निर्दयी होगी वह मां जिसने जन्म देते ही अपने हृदय की कली को यों तोड़ कर मुझाने के लिए फैंक दिया। अच्छा हुआ, वह किसी हिंसक पशु का ग्रास नहीं बन गई। इस विशाल आम्र-वृक्ष ने ही मानो उसे सुरक्षित रखा, अत: मालिनी ने उसका नाम अम्बपाली रखा । बड़ी होकर उसने बहुत से आम के वृक्ष लगाये और पाले, इस माने में भी उसका अम्बपाली नाम सार्थक हुआ।
मालिनी ने कन्या को बड़े प्यार से पाला । वह दूज के चांद की टुकड़ी गरीब मालिन के प्यार में श्री वृद्धि को प्राप्त हुई। जैसे उसके बाग की कलियां समय पाकर प्रफुल्लित फूल में बदल जाती थीं, वैसे ही यह कन्या अनिंद्य सौन्दर्य लिए हुए बालिका से किशोरी और किशोरी से नवयौवना के रूप में प्रफुल्लित होती चली गई। शुक्ल पक्ष की द्वितीया का चांद इस षोडशी के रूप में पूर्णिमा का परिपूर्ण चांद बन गया। उसने नृत्य विद्या सीखी और उसमें पारंगत हुई, वाद्य-विद्या सीखी और उसमें प्रवीण हुई, संगीत-विद्या सीखी और उसमें दक्ष हुई। इसी प्रकार अनेक ललित-कलाओं में निपुणता प्राप्त की। इन सबने उसके अप्रतिम सौन्दर्य में विशिष्ट सुरभि भर दी।
प्रजातंत्र के राजघरानों के मनचले युवकों की नजर अम्बपाली पर पड़ी। सभी उसे हथियाने के लिए लालायित हो उठे। उसे अपनी बनाने के लिए आतुर हो उठे। अनेकों की अपेक्षाएं पारस्परिक प्रतिस्पर्धा में बदलीं, प्रतिस्पर्धी पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता में बदली और इस पारस्परिक कलह ने नगर की और राष्ट्र की सुरक्षा, शान्ति को खतरे में डाल दिया। बड़े-बूढ़ों ने सुलह करवानी चाही पर असफल रहे। अत: सब ने मिल कर फैसला किया कि वह किसी एक की न होकर सब्बेसं होतु याने सबकी हो । किसी एक घर की वधू न होकर नगरवधू हो, जनपदवधू हो। किसी एक घर की कुलशोभिनी न होकर नगरशोभिनी हो, जनपदशोभिनी हो । अतः सबने मिल कर उसे जनपदकल्याणी के पद पर आसीन किया। जनपद की सर्वश्रेष्ठ सुन्दरी के लिए यह पद निश्चित हुआ करता था। राज्य ने जनपदकल्याणी की एक रात की कीमत पचास मुद्राएं निश्चित की जो कि उन दिनों के मूल्यों के अनुसार बहुत अधिक थी।
अम्बपाली इस निर्णय से नाखुश नहीं थी। जनपद-सुन्दरी के पद पर सुशोभित होना उसे अच्छा ही लगा। वह अपने पेशे से खुश थी। दिन-पर-दिन उसकी रूप-शोभा की प्रसिद्धि फैलने लगी। उसके कारण वैशाली नगर और वज्जियों के जनपद की शोभा-प्रसिद्धि बढ़ने लगी। आस-पास के जनपदों में भी अम्बपाली की ख्याति फैली। उसी के लिए अनेक लोग वैशाली आने लगे। समीप के मगध जनपद के राजगृह नगर का निगमपति किसी राजकार्य से वैशाली आया। वहां उसने अम्बपाली की बड़ी ख्याति सुनी । वह उसे देखने गया। लौट कर मगध नरेश बिम्बिसार को सारा विवरण कह सुनाया। बिम्बिसार तब तक भगवान बुद्ध के सम्पर्क में नहीं आया था। अभी वह नवयौवन के मादक ज्वार में से गुज़र रहा था। राज्य-सत्ता का मद तो था ही, काम-मद भी कम नहीं था। जहां कहीं किसी रूपसुंदरी की चर्चा सुनता, वह उसे प्राप्त करने के लिए कामातुर हो उठता । एक शासक कीअपार शक्तियां होती हैं परन्तु वह उसके राज्य तक ही सीमित रहती हैं। पराये राज्य में उसका प्रवेश भी खलबली मचा देने का कारण बन सकता है। अत: ऐसी अवस्थाओं में वह भेष बदल कर ही प्रवेश करता था। अवन्ति जनपद की राजधानी उज्जैन नगरी की जनपदकल्याणी पद्मावती के पास वह इसी प्रकार छद्म-वेष में पहुंचा था। तब तो उसे अन्य अनेक मध्यवर्ती राज्यों में से गुजरना पड़ा था। पर वज्जी जनपद तो पड़ोस में ही था। वैशाली राजनगरी चन्द योजन की दूरी पर ही स्थित थी। वह कुछ एक साथियों के संग वेष बदल कर वैशाली जा पहुंचा और उसकी कीमत चुकाकर उसने एक रात अम्बपाली के साथ बिताई। इसी से अम्बपाली को गर्भ रह गया। उसने अम्बपाली को अपना सही परिचय बता दिया था। अत: गर्भिणी होने पर अम्बपाली ने इस तथ्य की सूचना मगध नरेश को भिजवाई। बिम्बिसार ने उसके भरण-पोषण के लिए आवश्यक धन भिजवाने का प्रबन्ध करवा दिया। समय पाकर अम्बपाली को प्रसव हुआ। उसने एक बालक को जन्म दिया। बिम्बिसार के उस पुत्र का नाम रखा गया - विमल कौंडण्य ।
बिम्बिसार ने पद्मावती को आदेश दिया था कि अपना पुत्र अभयकुमार राजगृह के राजमहल में पालन-पोषण के लिए भेज दे। पद्मावती ने यही किया। परन्तु विमल कौंडण्य अपनी माता अम्बपाली के पास ही रहा। हो सकता है मगध-नरेश ने उसकी मांग की हो परन्तु अम्बपाली को पुत्र-वियोग स्वीकार्य न हुआ हो।
युवा होकर विमल कौंडण्य वैशाली में ही भगवान बुद्ध के सम्पर्क में आया। नहीं कहा जा सक ताकि उसे भगवान बुद्ध की ओर मोड़ने में बिम्बिसार का कितना हाथ था, यद्यपि वह अपने सारे परिवार को भगवान की शिक्षा से लाभान्वित देखा चाहता था। विमल कौंडण्य राजगृह के राजमहलों में नहीं गया बल्कि अपनी माता के साथ वैशाली में ही रहा। अत: अधिक संभावना इस बात की है कि वह वैशाली के ही किसी परिचित के माध्यम से भगवान के सम्पर्क में आया हो। तब तक वैशाली में भगवान बुद्ध की बहुत ख्याति फैल चुकी थी। धन-धान्य से परिपूर्ण वैशाली और लिच्छवी जनपद एक बार कुछ वर्षों तक दुर्भिक्ष के शिकार हुए। बड़ी संख्या में भूखे असहाय लोग मरने लगे। भूख से मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ी कि मुर्दो की लाश उठवानी दुष्कर हो गई। सारा शहर सड़ती हुई लाशों से भर गया। इससे अनेक रोग फैले। इस दयनीय अवस्था में वैशाली के राजाओं ने राजगृह से भगवान बुद्ध को अपने यहां आमंत्रित किया। सौभाग्य से वैशाली में उनके पांव रखते ही सारे उपद्रव दूर हो गये। दुर्भिक्ष सुभिक्ष में बदल गया, नगर रोग-मुक्त हो गया । अन्य उपद्रव भी दूर हो गये। लोगों ने राहत की सांस ली। इस घटना से वैशाली में भगवान बुद्ध को बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हुई। उनके प्रति अनेक लोग श्रद्धालु हुए। बहुतेरों ने उनकी शरण ग्रहण की। दिन-पर-दिन लोग उनकी कल्याणी शिक्षा की ओर मुड़ने लगे। अतः यही अनुमान करना उचित है कि विमल कौंडण्य प्रभूत पारमी का धनी होने के कारण युवावस्था में प्रवेश करने पर स्वत: भगवान की ओर आकर्षित हुआ, उनके उपदेशों से प्रभावित हो अपनी वात्सल्यमयी माता अम्बपाली को छोड़ कर घर से बेघर हो, सिर मुंडवा कर भगवान के पास प्रव्रजित हो गया।
भगवान ने उसे उसके अनुकूल विपश्यना साधना सिखाई जिसका अभ्यास करते हुए अचिर काल में ही वह अरहन्त हो गया। अरहन्त होने पर उसने अपने हर्ष-भरे उद्गार अनेकार्थी श्लेष-भाषा में अभिव्यक्त किये -
दुम्हो आय उप्पनो - द्रुम याने वृक्ष के नाम पर आख्यात याने अम्बपाली के कोख से उत्पन्न ।
द्रुम की अनेक जड़ें और अनेक शाखाएं होती हैं, अम्बपाली के भी अनेक पति और अनेक पुत्र हुए। इस अर्थ में भी यह श्लेष शब्द प्रयुक्त हुआ।
जातो पण्डर के तुना - श्वेत छत्र का पुत्र याने महाराज बिम्बिसार का पुत्र।
उन दिनों के भारत में राजा-महाराजा श्वेत छत्र धारण करते थे जो कि समय बीतते-बीतते सुनहरी जरियों से मण्डित लाल रंग का छत्र हो गया। परन्तु पड़ोसी ब्रह्म देश में भारत की पुरातन परम्परा अभी भी चली आ रही है। झालरदार श्वेत छत्र वहां आज भी राज्य शासक का प्रतीक है।
के तुहा - याने अहंकाररूपी के तु को नष्ट करने वाले,
के तुनायेव - याने इस के तु द्वारा याने मार से युद्ध कर सक ने वाली प्रज्ञा द्वारा, इस धर्म-ध्वजा द्वारा जिसे धम्मोहि इसीनं धजा कहा गया याने ऋषियों की ध्वजा धर्म ही है, ऐसी धर्म-ध्वजा द्वारा -
महाके तुपधंसयि ।
- पाप की महान ध्वजा धारण किये हुए पापी मार को परास्त किया याने अरहन्त अवस्था प्राप्त की।
जैसे किसी कीचड़-भरे, गन्दे तालाब में सुन्दर, सुरभित कमल उग आये वैसे ही एक गर्हित जीवन जीने वाली गणिका के कोख से यह भावी अरहन्त उत्पन्न हुआ। अम्बपाली की कोख धन्य हुई, बिम्बिसार का पितृत्व धन्य हुआ! धन्य हुआ दोनों के संयोग से उत्पन्न विमल कौंडण्य! धन्य हुई भगवान बुद्ध की धर्म-देशना! ऐसा कल्याण सबका हो!
कल्याण मित्र
स. ना. गो.
जून 1993 हिंदी पत्रिका में प्रकाशित

Premsagar Gavali

This is Adv. Premsagar Gavali working as a cyber lawyer in Pune. Mob. +91 7710932406

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