Anapana


Anapana Course for Children



"आनापान"
सांस सांस को जानना,
यह ही आनापान।
जितना जाने सांस को,
हो उतना कल्याण।

आते जाते सांस पर,
पहरा लगे कठोर।
मन भटके तो मोड़ लें,
पुनः सांस की ओर।

🌷 इस पावन अभ्यास से,
चित्त सुधरता जाय।
एक एक कर पाप की, 
परत उतरती जाय।


*आनापान सति*
🔸मन को वश में करने के लिये, मन को एकाग्र करने के लिये 'आनापान साधना' का सक्रिय अभ्यास अनिवार्य है।
🔸आनापान पाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है - श्वास-प्रश्वाश अर्थात भीतर जाने वाली सांस, बाहर आने वाली सांस।
🔸आनापान साधना में मन को टिकाने के लिये नैसर्गिक सांस का आलम्बन (सहारा) लेते हैं।
🔸मन को टिकाने के लिये सांस का ही आलम्बन लेने के दो प्रमुख कारण हैं -
1. सांस हर प्राणी के साथ हर समय उपलब्ध है तथा हर सम्प्रदाय को मानने वाला इसे स्वीकार कर सकता है।
2. सांस का हमारे विकारों के साथ बड़ा गहरा सम्बन्ध है।
हमारे मन में जैसे ही कोई विकार - क्रोध, ईर्ष्या, भय, वासना जागता है, वैसे ही हमारे सांस की गति अपने आप तेज हो जाती है।
जैसे ही वह विकार दूर होता है, सांस अपने आप धीमी हो जाती है, शान्त और सूक्ष्म हो जाती है।
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💐प्रश्न--कभी कभी शिक्षक होने के नाते राग को बढ़ाना पड़ता है और द्वेष को भी। क्रोध भी करना पड़ता है।
उत्तर--उन्ही के कल्याण के लिये क्रोध आया।हम तो सिखा रहे हैं एक अच्छी बात और वह बच्चा सीख ही नही रहा है। हमें क्रोध आया, दो चांटे भी लगाए-ठीक रास्ते चलो। यह रास्ता अच्छा है।
लेकिन अगर विपश्यना नही कर रहे हो तो देखोगे की यह करते हुए हमने जो क्रोध जगाया तो अपने आप को दुखी बनाया, और उस क्रोध के साथ जो वाणी हमने कही-- भले ही न्यायिकरण(justify) तो करते हैं की हम ऐसा नही कहते तो वह समझता ही नही।
लेकिन उस वाणी के साथ जो तरंगे गयी वे तरंगे उसे कहीं भी समझने लायक नही बनाएंगी। वह और भी ज्यादा व्याकुल होकर गलत रास्ते जाएगा।
तो क्या करें ?
जब क्रोध करना हो-- हम इसे क्रोध नही कहते, माने जब कठोरता का व्यवहार करना हो; क्योंकि उस बच्चे को मृदु भाषा बहुत कह कर देख चुके, कुछ भी असर नही होता उसपर।
कठोरता की ही भाषा समझता है, तो पहले अपने भीतर देखेंगे--
अंदर समता है ना !
क्रोध तो नही जाग रहा है ना।
और इसी बच्चे के प्रति करुणा जाग रही है ना। और कोई भाषा समझता ही नही है यह, तो बड़ी कठोरता से व्यवहार करेंगे। भीतर तो करुणा ही करुणा है। यह अंतर आएगा।
कठोरता की जगह कटुता आ जाती है तो वह अपने लिये भी हानिकारक है, औरो के लिये भी हानिकारक होती है।
यह इस विद्या से सीखेंगे।
संवेदना जाग रही है। हमको कुछ करना है, तो भीतर क्या संवेदना है, और उस संवेदना से हम नही प्रभावित होते।
हम तो समता में हैं, और यह समझ रहे हैं कि इस व्यक्ति के साथ कठोरता का व्यवहार करना है।
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🌹गुरूजी--
किसी प्राणी की हत्या करना ही नही बल्कि काया द्वारा किया गया प्रत्येक कर्म जो किसी प्राणी का अहित करता है, उसे पीड़ित करता है वह हिंसा ही है।
मसलन किसी व्यक्ति की वस्तु चुराना, लूटना, छीनना, झपटना, अपनाना हिंसा ही है।
शरीर के काम संबंधी मिथ्या आचरण करना हिंसा ही है।
वाणी द्वारा झूठ बोलकर किसी को ठगना, कटु, कड़वी, निंदा, चुगली की वाणी बोलना हिंसा ही है।
🌻आजीविका में भी मिथ्याचरण है तो हिंसा ही है।अपने अन्न दाता ग्राहक को खाद्य पदार्थ, दवाएं अथवा अन्य उपभोक्ता वस्तुओ में मिलावट करके अथवा तोल व माप आदि में कमी करके ठगना हिंसा ही है।अकाल की तंगी के समय अपने धन, बल द्वारा संचय संग्रह कर लेना और फिर लोभ के वशीभूत हो ऊँचे दामो में बेचकर ग्राहकों को पीड़ित करना हिंसा ही है।