"चित्त के स्तर"

प्रत्येक साधक की कुछ दिन ध्यान साधना करने के बाद यह जानने की इच्छा होती है कि मेरी कुछ ‘आध्यात्मिक प्रगति’ हुई या नहीं? क्या मैं साधना के नाम पर "भुस में लठ" तो नहीं मार रहा? इस बात से प्रेरित होकर आपको इस पोस्ट के माध्यम से अवगत करने की कोशिश कर रहा हूँ। ‘आध्यात्मिक प्रगति’ को नापने का मापदंड है- आपका अपना चित्त! आपका अपना चित्त कितना शुद्ध और पवित्र हुआ है, वही आपकी आध्यात्मिक स्थिति को दर्शाता है। अब आपको भी अपनी आध्यात्मिक प्रगति जानने की इच्छा है, तो आप भी इन निम्नलिखित चित्त के स्तरों से अपनी स्वयं की आध्यात्मिक स्थिति को जान सकते हैं | बस, अपने ‘चित्त का प्रामाणिकता’ के साथ ही ‘अवलोकन’ करें, यह अत्यंत आवश्यक है।


(1) दूषित चित्त👉
चित्त का सबसे निचला स्तर है, दूषित चित्त! इस स्तर पर साधक सभी के दोष ही खोजते रहता है। दूसरे, सबका बुरा कैसे किया जाए, सदैव इसी का विचार करते रहता है। दूसरों की प्रगति से सदैव ‘ईर्ष्या’ करते रहता है। नित्य नए-नए उपाय खोजते रहता है कि किस उपाय से हम दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते है। सदैव नकारात्मक बातों से, नकारात्मक घटनाओं से, नकारात्मक व्यक्तिओं से यह ‘चित्त’ सदैव भरा ही रहता है।
(2) भूतकाल में खोया चित्त👉
एक चित्त एसा होता है, वह सदैव भूतकाल में ही खोया हुआ होता है। वह सदैव भूतकाल के व्यक्ति और भूतकाल की घटनाओं में ही लिप्त रहता है। जो भूतकाल की राग-द्वेष घटनाओं में रहने का इतना आदी हो जाता है कि उसे भूतकाल में रहने में आनंद का अनुभव होता हैं !
(3) नकारात्मक चित्त👉
इस प्रकार का चित्त सदैव बुरी संभावनाओं से ही भरा रहता है। कुछ-न-कुछ बुरा ही होगा! सदैव यह चित्त वाला मनुष्य सोचते रहता है। यह अति भूतकाल में रहने के कारण होता है, क्योंकि अति भूतकाल में रहने से वर्तमान काल खराब हो जाता है।
(4) सामान्य चित्त👉
यह चित्त एक सामान्य प्रकृत्ति का होता है। इस चित्त में अच्छे-बुरे दोनों ही प्रकार के विचार आते हैं। यह जब अच्छी संगत में होता है, तो इसे अच्छे विचार आते हैं और जब यह बुरी संगत में रहता है तब उसे बुरे विचार आते हैं। यानी इस चित्त के अपने कोई विचार नहीं होते। जैसी अन्य चित्त की संगत मिलती है, वैसे ही उसे विचार आते हैं। वास्तव में वैचारिक प्रदूषण के कारण नकारात्मक विचारों के प्रभाव में ही यह ‘सामान्य चित्त’ आता है।
(5) निर्विचार चित्त👉
साधक जब कुछ ‘साल’ तक ध्यान साधना करता है, तब यह निर्विचार चित्त की स्थिति साधक को प्राप्त होती है। यानी उसे अच्छे भी विचार नहीं आते और बुरे भी विचार नहीं आते। उसे कोई भी विचार ही नहीं आते। वर्तमान की किसी परिस्थितिवश अगर चित्त कहीं गया तो भी वह क्षण भर ही होता है। जिस प्रकार से बरसात के दिनों में एक पानी का बबुला एक क्षण ही रहता है, बाद में फूट जाता है, वैसे ही इसका चित्त कहीं भी गया तो एक क्षण के लिए जाता है, बाद में फिर अपने स्थान पर आ जाता है। यह आध्यात्मिक स्थिति की ‘प्रथम पायदान’ होती है, क्योंकि फिर कुछ साल तक अगर इसी स्थिति में रहता है तो चित्त का सशक्तिकरण होना प्रारंभ हो जाता है और साधक एक सशक्त चित्त का धनी हो जाता है।
(6) दुर्भावनारहित चित्त👉
चित्त के सशक्तिकरण के साथ-साथ चित्त में निर्मलता आ जाती है और बाद में चित्त इतना निर्मल और पवित्र हो जाता है कि चित्त में किसी के भी प्रति बुरा भाव ही नहीं आता है, चाहे सामनेवाला का व्यवहार उसके प्रति कैसा भी हो! यह चित्त की एक अच्छी दशा होती है।
(7) सद्भावना भरा चित्त👉
ऐसा चित्त बहुत ही कम लोगों को प्राप्त होता है। इनके चित्त में सदैव विश्व के सभी प्राणिमात्र के लिए सदैव सद्भावना ही भरी रहती है। ऐसे चित्तवाले मनुष्य ‘संत प्रकृत्ति’ के होते हैं वे सदैव सभी के लिए अच्छा, भला ही सोचते हैं। ये सदैव अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं। इनका चित्त कहीं भी जाता ही नहीं है। ये साधना में लीन रहते हैं।
(8) शून्य चित्त👉
यह चित्त की सर्वोत्तम दशा है। इस स्थिति में चित्त को एक शून्यता प्राप्त हो जाती है। यह चित्त एक नली जैसा होता है, जिसमें साक्षात प्रकृति का ‘चैतन्य’ सदैव बहते ही रहता है। प्रकृति की ‘करुणा की शक्ति’ सदैव ऐसे शून्य चित्त से बहते ही रहती है। यह चित्त कल्याणकारी होता है। यह चित्त किसी भी कारण से किसी के भी ऊपर आ जाए तो भी उसका कल्याण हो जाता है। इसीलिए ऐसे चित्त को कल्याणकारी चित्त कहते हैं। ऐसे चित्त से कल्याणकारी शक्तियाँ सदैव बहते ही रहती हैं। यह चित्त जो भी संकल्प करता है, वह पूर्ण हो जाता है। यह सदैव सबके मंगल के ही कामनाएँ करता है। मंगलमय प्रकाश ऐसे चित्त से सदैव निरंतर निकलते ही रहता है।
अब आप अपना स्वयं का ‘अवलोकन’ करें और जानें कि आपकी आध्यात्मिक स्थिति कैसी है। आत्म की पवित्रता का और चित्त का बड़ा ही निकट का संबंध होता है। अब तो यह समझ लो कि ‘चित्तरूपी धन’ लेकर हम जन्मे हैं और जीवनभर हमारे आसपास सभी ‘चित्तचोर’ जो चित्त को दूषित करने वाले ही रहते हैं, उनके बीच रहकर भी हमें अपने चित्तरूपी धन को संभालना है। अब कैसे? वह आप ही जानें!!!

Premsagar Gavali

This is Adv. Premsagar Gavali working as a cyber lawyer in Pune. Mob. +91 7710932406

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