! (उद्बोधन)


तिहाड़ जेल में कैदियों का विशाल शिविर निर्विघ्न संपन्न हुआ। एक हजार साधकों का बृहद शिविर लगने की पु. गुरुदेव की भविष्य वाणी सफलीभूत हुई। दुखियारे कैदियों का कल्याण हुआ।

वास्तविकता तो यह है कि जेल की चारदीवारी के भीतर रहने वाले ही दुखियारे कैदी नहीं हैं। जेल की दीवारों के बाहर रहने वाले भी दुखियारे कैदी ही हैं। अपने-अपने मनोविकारों की कैद में सब गिरफ्त हैं और दुखी हैं। कैद की अवधि पूरी होने पर जेल के कैदी छूट जाते हैं, परंतु जेल के भीतर और बाहर रहने वाले इन करोड़ों-अरबों बंदियों को अपने-अपने विकारों की कैद से मुक्त हो सकना अत्यंत कठिन है। यह कैद न जाने कितने जन्मों से सब को बंदी बनाए हुए है और न जाने कितने जन्मों तक बंदी बनाए रखेगी। इस कैद की यंत्रणा असीम है, अगाध है, असह्य है। मनोविकारों के दूषित स्वभाव-शिकंजे से छुटकारा पाए बिना इस कैद से छुटकारा पाना नामुमकिन है, इस यंत्रणा से छुटकारा पाना असंभव है।
बाहरी दुनिया में कोई व्यक्ति अपराध करता हुआ पकड़ा जाय अथवा निरपराध होने पर भी संदेह में पकड़ा जाय तो उसे चारदीवारों के भीतर बंदी के रूप में रहना पड़ता है और परिवार के विछोह तथा घर की सुख-सुविधा से वंचित रहने की यंत्रणा एक निश्चित अवधि तक सहनी पड़ती है। परंतु भीतर तो प्रतिक्षण अपराध पनप रहा है और प्रतिक्षण भीतर ही भीतर सजा भुगती जा रही है। अपने ही अज्ञान के कारण अंतर्मन में एक ऐसा स्वभाव बना लिया गया है जो कि राग-द्वेष की प्रतिक्रिया करता ही रहता है। इस स्वभाव-शिकंजे में सब के सब केवल जकड़े हुए ही नहीं हैं, बल्कि इसे क्षण प्रतिक्षण दृढ़ से दृढ़तर बनाए जा रहे हैं । इस आत्म-निर्मित गिरफ्तारी से कैसे मुक्त हों? इस स्वजनित दुःख से कैसे छुटकारा पाएं? 
विपश्यना के अतिरिक्त अन्य कोई साधन नहीं, जो इन गहराइयों तक आबद्ध इस घातक स्वभाव-शिकंजे का भंजन कर सके । चाहे जेल में हों या जेल के बाहर, सब इस आंतरिक कैद से मुक्त हों। सब इस वास्तविक मुक्ति के विपश्यना-पथ पर सजग रह कर गंभीरतापूर्वक चलते रहें। इसी में सब का मंगल है, इसी में सब का कल्याण है।
कल्याण मित्र,
स. ना. गो.
जून 1994 हिंदी पत्रिका में प्रकाशित

Premsagar Gavali

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