राग और द्वेष


भगवान की बताई हुई साधना - विधि के साधक होने के नाते हम खूब समझने लगते है की शब्द तो शब्द है ! निंदा हो या प्रशंशा , मात्र तरंगे ही तो है । परन्तु निंदा के शब्द जब हमारे कानो में स्पर्श करते है तो अपने पुराने संस्कारों से प्रभावित हुई संज्ञा उनका अवमूल्यन करती है और इन शब्दों को बुरा मान लेने के कारन शरीर में अप्रिय , दुखद संवेदना उत्पन्न होती है । उसी के परिणामस्वरुप अज्ञान अवस्था में हमारे मानस का एक हिस्सा दुर्मन हो उठता है । द्वेष , क्रोध , कोप की प्रतिक्रिया करने लगता है ।
इसी प्रकार जब प्रशंशा के शब्द हमारे कानो को स्पर्श करते है तो यह संज्ञा उनका अधिमुल्यन करती है और उन शब्दों को अच्छा मान लेने से शरीर में प्रिय , सुखद संवेदना उत्पन्न होती है । उसी के परिणामस्वरूप अज्ञान अवस्था में हमारे मानस का एक हिस्सा प्रफुल्लित हो उठता है और राग , लोभ , आसक्ति की प्रतिक्रिया करने लगता है ।
प्रतिक्रिया चाहे द्वेष की करे या राग की , हमारा चित्त दूषित कर्म-संस्कार के धुए से धूमिल हो उठता है । वह सच्चाई को यथाभूत नहीं देख पाता ।
अविद्या से अभिभूत हो जाता है ।
अपनी समता खो बैठता है और विकार पर विकार जगते ही जाते है । हमारी विपश्यना छुट जाती है । राग - द्वेष से मुक्त होने के काम में अंतराय , बाधा उत्पन्न हो जाती है । पांच निवरनो में से यह दोनों प्रमुख है , अतः इनके रहते समाधी अवस्था भी नहीं प्राप्त हो सकती । प्रज्ञा जगा कर राग-विहीन , द्वेष-विहीन हो सकना तो दूर रहा । निंदा या प्रशंशा सुन कर राग या द्वेष जगाते है तो हम औरो की हानि करे या ना करे , अपनी हानि तो अवश्य करते है । अपनी प्रगति में अवश्य बाधा पैदा करते है
अतः इसे भलीभांति समझते हुए हम इससे बचे और धर्म-पथ पर प्रगतिशील बने रहे और अपना मंगल साधते रहे !
💐💐💐💐💐
।। सबका मंगल हो ।।
🌹गुरूजी, कृपया हमे स्पष्ट करें कि धर्मसेवा हमे अपनी पारमी बढ़ाने में कैसे सहायक होती है?
उत्तर--धर्मसेवा अपने आप में ही पारमी है।
धर्मसेवा क्या है? आप धर्मदान के एक अंग बन जाते हैं।आप सेवा करते हैं ताकि यह धर्म का दान लोगो को उचित प्रकार से दिया जा सके, और दसो पार्मिओ में दान सबसे बड़ी पारमी है।
🍁ओर केवल दान ही नही, जब आप किसी दस दिन के शिविर में सेवा देते हो तब आप अपनी दसो पारमी विकसित करने का अवसर पाते हो।
दस दिन के शिविर में आकर जैसे जैसे आप साधना करते हैं, आप पारमी ही पारमी पैदा करते हैं।
🌷यहाँ रहते हुए आप शील पालन करते हैं, क्योंकि आप खूब सजग हैं कि आप धर्मभूमि में हैं।आप यहाँ धर्मभूमि की तरंगे दूषित करने के लिये नही आएं हैं, बल्कि शुद्ध तरंगो का अंशदान देने के लिये हैं।
आप कहीं बाहर भी शील पालन करते है- यह अच्छा है, पुण्यकारी है। लेकिन आप धर्मभूमि पर शील पालन करते हैं तो यह कहीं अधिक अच्छे परिणाम देता है।
🌻ऐसे ही सहिष्णुता (tolerance) की पारमी - अब आप साधको का सामना करते हैं, और साधक उखड़े हुए हैं।ऑपरेशन चल रहा है। कोई नकारात्मकता(negativity) उत्पन्न कर रहा है और आपकी और फ़ेंक रहा है। और आप मुस्करा देते हैं।
अरे, बेचारा दुखी है, आप मैत्री जगा रहे हैं। आप प्रतिक्रिया नही करते। आपकी क्षांति पारमी पुष्टतर होती जा रही है।
आपको दो तीन बार ध्यान करने का अवसर मिलता है, आपकी समाधी मजबूत होने लगी। आपकी प्रज्ञा बलवान होने लगी, आपकी मैत्री बलवान होने लगी।
🌻किसी शिविर में आप स्वयं तक सिमित है, लेकिन जब आप सेवा देते हैं तब आप बाहरी दुनिया में कैसे जिया जाय, यह सीखते हैं।उपयुक्त वातावरण में सेवा करने से आप बाहरी संसार में लोगो की सेवा करना सीख जाते हैं, बाहर के संसार के झनझावतो(disturbances) का सामना हर स्थिति में करने में सहायता मिलती है।
🌺जिन लोगो ने धर्मसेवा देनी प्रारम्भ की, वे आकर मुझे कहते हैं- मै अपने अनुभव से भी जानता हूँ- कि अब उनकी साधना और अधिक अच्छी होने लगी है। वे अधिक गहराई तक पहुँच पाते हैं। उनकी समता बढ़ी है। उनकी मैत्री प्रबल हुई है।
इस प्रकार आपकी साधना और तेज होती है क्योंकि आपने कुछ और अधिक पारमी अर्जित कर ली है जो आपके खाते में जमा होती जाती है।
🌼धर्मसेवा का दान किसी के धन के दान की तुलना में बहुत ऊँचा है, क्योंकि सेवा देते समय आपके मन में विचार चलता रहता है की बिना किसी फल की आशा के लोगो के भले के लिये सेवा कर रहे हैं।उनकी साधना में आने वाली कठिनाइयां दूर हो।मै उनकी क्या मदद करूँ जिससे वे शांतिपूर्वक काम कर सकें।यह सत्संकल्प 10 दिन तक चलता रहता है।आप औरो को धर्म प्राप्त करते देखकर प्रसन्नता महसूस करते हैं।
💐प्रतिक्षण आपकी सेवा आपकी पारमी बढाती है। इसलिये मेरे अनुसार धर्मसेवा सर्वोच्च दान है।उस दान से भी बहुत बड़ा जो आप धन के रूप में देते हैं।

Premsagar Gavali

This is Adv. Premsagar Gavali working as a cyber lawyer in Pune. Mob. +91 7710932406

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