सावत्थी का प्रसंग ।
तब आयुष्मान सारिपुत्त भगवान के पास गये और उनका अभिवादन कर एक ओर बैठ गये। तब आयुष्मान सारिपुत्त ने भगवान से यह कहा –
“भंते!
‘महापुरुष, महापुरुष' कहा जाता है, क्या होने से कोई महापुरुष होता है?"
“सारिपुत्त!
चित्त के विकारों से विमुक्त होने पर कोई महापुरुष होता है। विकारों से विमुक्त चित्त वाले पुरुष को ही मैं महापुरुष कहता हूं। चित्त के विकारों से विमुक्त नहीं होने पर कोई महापुरुष नहीं होता। ऐसे विकारों से अविमुक्त चित्त वाले पुरुष को मैं महापुरुष नहीं कहता।"
“सारिपुत्त!
कोई चित्त के विकारों से विमुक्त कैसे होता है?”
“सारिपुत्त!
कोई भिक्षु (साधक) (साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, काया में कायानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार काया में कायानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आसवों से मुक्त हो जाता है।
“(साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, वेदनाओं में वेदनानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार वेदनाओं में वेदनानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आसवों से मुक्त हो जाता है।
“(साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, चित्त में चित्तानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार चित्त में चित्तानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आसवों से मुक्त हो जाता है।
“(साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, धर्म में धर्मानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार धर्म में धर्मानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आस्रवों से मुक्त हो जाता है।
“सारिपुत्त!
इस प्रकार चित्त के विकारों से मुक्त होने से ही कोई महापुरुष होता है। चित्त के विकारों से अविमुक्त होने पर कोई महापुरुष नहीं होता। ऐसा मैं कहता हूं।"
(संयुतनिकाय (३.५.३७७), महापुरिससुत्त)
पुस्तक: "सारिपुत्त" भगवान बुद्ध के अग्रश्रावक ।
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥
भवतु सब्ब मंङ्गलं !!
तब आयुष्मान सारिपुत्त भगवान के पास गये और उनका अभिवादन कर एक ओर बैठ गये। तब आयुष्मान सारिपुत्त ने भगवान से यह कहा –
“भंते!
‘महापुरुष, महापुरुष' कहा जाता है, क्या होने से कोई महापुरुष होता है?"
“सारिपुत्त!
चित्त के विकारों से विमुक्त होने पर कोई महापुरुष होता है। विकारों से विमुक्त चित्त वाले पुरुष को ही मैं महापुरुष कहता हूं। चित्त के विकारों से विमुक्त नहीं होने पर कोई महापुरुष नहीं होता। ऐसे विकारों से अविमुक्त चित्त वाले पुरुष को मैं महापुरुष नहीं कहता।"
“सारिपुत्त!
कोई चित्त के विकारों से विमुक्त कैसे होता है?”
“सारिपुत्त!
कोई भिक्षु (साधक) (साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, काया में कायानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार काया में कायानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आसवों से मुक्त हो जाता है।
“(साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, वेदनाओं में वेदनानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार वेदनाओं में वेदनानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आसवों से मुक्त हो जाता है।
“(साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, चित्त में चित्तानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार चित्त में चित्तानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आसवों से मुक्त हो जाता है।
“(साढ़े तीन हाथ के काया-रूपी) लोक में राग और द्वेष को दूर कर, श्रमशील, स्मृतिमान और संप्रज्ञानी बन, धर्म में धर्मानुपश्यी होकर विहार करता है। इस प्रकार धर्म में धर्मानुपश्यना करने से चित्त वैराग्य प्राप्त करता है और उपादानरहित हो आस्रवों से मुक्त हो जाता है।
“सारिपुत्त!
इस प्रकार चित्त के विकारों से मुक्त होने से ही कोई महापुरुष होता है। चित्त के विकारों से अविमुक्त होने पर कोई महापुरुष नहीं होता। ऐसा मैं कहता हूं।"
(संयुतनिकाय (३.५.३७७), महापुरिससुत्त)
पुस्तक: "सारिपुत्त" भगवान बुद्ध के अग्रश्रावक ।
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥
भवतु सब्ब मंङ्गलं !!