1) बुद्ध उप्पादो दुल्लभो लोकस्मिं ।
लोक में बुद्ध का उत्पन्न होना दुर्लभ है ।
एक सम्यक संबुद्ध और दूसरे सम्यक संबुद्ध के बीच बहुत लंबा अंतराल, बहुत लंबा समय होता हैं । अनेक कल्पों का अंतराल,
कभी कभी एक असंखेय (1 आगे 140 शून्य) कल्पों का अंतराल भी होता हैं ।
(कल्प = सौर मंडल की आयु)
एक योजन ,यानी 13 किलोमीटर लंबा, 13 किलोमीटर चौड़ा और 13 किलोमीटर गहरा गड्डा सरसों के दानों से भरकर 100-100 वर्षों के अंतराल से एक-एक सरसों का दाना निकालते निकालते वह गड्डा पूरा खाली हो जाएगा, पर एक कल्प पूरा नहीं होगा )
कभी कभी एक ही कल्प में एक से ज्यादा सम्यक संबुद्ध होते हैं । फिर भी एक सम्यक संबुद्ध और दूसरे सम्यक संबुद्ध के बीच लाखों-करोड़ों-अरबों वर्षों का अंतराल होता हैं ।
सभी सम्यक सम्बुद्धों के दो शासन (बुद्ध शासन) होते हैं ।
वह भी 500-500 वर्षों के या 1000-1000 वर्षों के ।
प्रथम और द्वितीय बुद्ध शासन में 2000 वर्षों का या 4000 वर्षों का अंतराल होता हैं ।
पिछले चार असंखेय और एक लाख कल्पों में सिर्फ 28 सम्यक संबुद्ध हुए हैं ।
2) मनुस्स भावो दुल्लभो लोकस्मिं।
मनुष्य जीवन मिलना भी अत्यंत दुर्लभ होता हैं ।
अधिकांश मनुष्य मृत्यु के बाद नरक में, प्रेत योनि में या पशु-पक्षी योनि में जाते हैं ।
बहुत ही थोड़े मनुष्य ऐसे होते हैं, जो मृत्यु के बाद मनुष्य लोक में या देवलोक में या ब्रम्हलोक में जन्मते हैं ।
दुर्गति में जाने पर फिर से मनुष्य जीवन मिलना बहुत ही मुश्किल होता हैं ।
कभी कभी हजारों कल्पों तक, और कभी कभी तो लाखों कल्पों तक फिर से मनुष्य जीवन नहीं मिल सकता ।
देवलोक या ब्रम्हलोक में जन्म होने पर भी वहाँ की आयु समाप्त होने के बाद अधिकांश देवता और ब्रम्हा दुर्गति को ही जाते हैं ।
3) सद्धम्म सवनं दुल्लभो लोकस्मिं।
सद्धम्म ( सध्दर्म ) सुनने को मिलना और समझना भी अत्यंत दुर्लभ होता हैं ।
बहुत ही थोड़े से मनुष्य ऐसे होते हैं, जिन्हें धम्म (धर्म) सुनने को मिलता है ।
उदाहरण के लिए: वर्तमान समय में भारत में धम्म (धर्म ) आकर 60 वर्षों से भी अधिक का समय गुजर गया, कितने लोगों ने धम्म सुना ?
बचपन से पानातिपाता वेरमणी सिक्खापदं समादियामि । कहने वाले 98% लोगों को पानातिपाता शब्द का अर्थ मालूम नहीं है । वेरमणी शब्द का अर्थ मालूम नहीं है ।
सिक्खापदं शब्द का अर्थ मालूम नहीं है ।
समादियामि शब्द का अर्थ मालूम नहीं है ।
बुद्ध शब्द का अर्थ मालूम नहीं है ।
बुद्ध की शिक्षा ( विपश्यना ) के बारे में कुछ नहीं मालूम ।
जो लोग पिछले 10, 20 या 30 वर्षों से रोज सुबह और शाम विहारों में जाते हैं, उनमें से भी 98% लोगों को मालूम नहीं है ।
Graduated, Post graduated लोगों में से भी और बड़े बड़े पदों पर आसीन लोगों में से भी अधिकांश लोगों को बुद्ध की शिक्षा के बारे में कुछ नहीं मालूम है ।
जो लोग विहारों के पदाधिकारी हैं, उनमें से भी अधिकांश लोगों को बुद्ध की शिक्षा ( विपश्यना ) के बारे में कुछ नहीं मालूम है ।
थोड़े से लोगों को मालूम है ।
4) सद्धा संपत्ति दुल्लभो लोकस्मिं ।
धम्म (धर्म ) के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होना भी अत्यंत दुर्लभ है ।
जब तक धम्म (धर्म) सुनेंगे नहीं, तब तक समझेंगे नहीं ।
और जब तक धम्म ( धर्म ) समझेंगे नहीं, तब तक धम्म (धर्म )के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हो नहीं सकती ।
धम्म (धर्म ) सुनने को मिलना, समझना और उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न होना अत्यंत दुर्लभ है ।
5) पब्बजित भावो दुल्लभो लोकस्मिं ।
प्रव्रजित होना भी अत्यंत दुर्लभ होता हैं ।
यहाँ प्रव्रजित शब्द के दो अर्थ होते हैं ।
पहला अर्थ : गृहत्याग कर, चिवर धारण कर, धम्म अभ्यास (धर्म का अभ्यास) में लग जाना ।
दुसरा अर्थ : बिना गृहत्याग किये ही, गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही अपने आपको बुद्ध, धर्म और संघ के प्रति समर्पित कर धर्म अभ्यास में लग जाना ।
अत्यंत दुर्लभ है ।
जब यह पांचो दुर्लभ बातें सुलभ होंगे, तभी हमारा कल्याण होगा ।
वर्तमान समय में इन पांच दुर्लभ बातों में से कुछ लोगों के लिए दो, कुछ लोगों के लिए तिन और कुछ लोगों के लिए चार दुर्लभ बातें सुलभ हो चुकी हैं ।
1) द्वितीय बुद्ध शासन चल रहा है, बुद्ध की शिक्षा (वीपश्यना) उपलब्ध है ।
2) मनुष्य जीवन तो मिला हुआ है ।
3) कुछ लोगों ने धम्म (धर्म ) बुद्ध की शिक्षा को सुना भी हैं और समझा भी हैं ।
4) कुछ लोगों के मन में बुद्ध की शिक्षा (वीपश्यना) के प्रति श्रद्धा भी उत्पन्न हुई हैं ।
अब और क्या चाहिए ?
अब तो बस अभ्यास करना ही बाकी है ।
धम्म (धर्म ) का अभ्यास न करने वालों की दुर्गति निश्चित हैं ।
दुर्गति में जाने के बाद फिर से मनुष्य जीवन मिलना बहुत ही मुश्किल होता है ।
अगर यह अनमोल मनुष्य जीवन धम्म (धर्म ) का अभ्यास किये बिना ही खो दिया तो, भविष्य में हमें फिर से मनुष्य का जीवन कब मिलेगा, कह नहीं सकते, और भविष्य में कभी मनुष्य का जीवन मिलें तो भी, उस समय बुद्ध का धम्म (धर्म ) (प्रथम या द्वितीय बुद्ध शासन) होगा, इसकी कोई Guarantee नहीं है ।
और अगर हो तो भी, हम सुनेंगे, सिखेंगे, समझेंगे और अभ्यास करेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है ।
तथागत भगवान बुद्ध की महा कल्याणकारी विद्या (विपश्यना - साधना ) में जो साधक जरा भी परिपक्व होता हैं, वह कभी भी दुर्गति को नहीं जा सकता ।
जब तक अरहंत अवस्था प्राप्त नहीं होती हैं, तब तक, अनेक जन्मों तक, जन्म-जन्मांतरो तक मनुष्य लोक और देवलोक में ही जन्म होते रहेगा । ईसलिए धम्म ( धर्म ) धारन करने से
( आचरण में लाने से ) होगा |
काम करना है .। मनुष्य का जीवन बडा अनमोल जीवन । अनमोल जीवन इस माने में कि यह काम कोई पशु नहीं कर सकता । कोई पक्षी नहीं कर सकता, कोई प्रेत-प्राणी नहीं कर सकता , कोई किट- पतंग नहीं कर सकता । यह काम केवल मनुष्य कर सकता हैं । प्रकृति ने या कहो परमात्मा ने इतनी बड़ी शक्ति मनुष्य को दि हैं कि वह अंतर्मुखी हो करके अपने वीकारों के उद्गम क्षेत्र में जा करके , उनका निष्कासन कर सकता हैं , उनको निकाल सकता हैं, भव से मुक्त हो सकता हैं । अरे ऐसा अनमोल जीवन और बाहरी बातों में बीता दें ? नहीं अब होश जागना चाहिए । अंतर्मुखी होकर सत्य का दर्शन करें और सही माने में अपना कल्याण कर लें ।
इसलिए इस मानव जीवन को सार्थक करें ।
खुब धम्म (धर्म ) अभ्यास करें ।
मंगल हो ।
मंगल मैत्री सहित ।
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