पहले जानो तब मानो !


✍ परंपरा से जो मान्यताएं मानी जाती आ रही हैं, उन्हें केवल मान लेने से अथवा किसी गुरु महाराज ने ऐसा कहा केवल इसलिए मान लेने से कोई सच्चाई को नहीं जान सकता। सचमुच सत्य क्या है? यह जानने के लिए हर एक को अपने भीतर स्वयं खोज करनी पड़ती है......🙏
📃 एक घना वन था। उसमें बेल के अनेक वृक्ष थे। उन वृक्षों की छाया में कई खरगोश रहते थे। खरगोश बड़े डरपोक होते हैं। उनमें से एक छोटा खरगोश तो बहुत ही डरपोक था। जरा सा पत्ता खड़के कि वह थर-थर कांपने लगे।
एक दिन वह एक बेल-वृक्ष के तले लेटा था कि उसकी नजर ऊपर फैले नीले आसमान पर पड़ी। यकायक उसके मन में विचार आया कि यह आसमान टूट पड़े तो मेरा क्या होगा? बस फिर क्या था? भय का यही विचार बार-बार उसके मन में चक्कर काटने लगा। खरगोश के भय का कोई ठिकाना न रहा। उसकी छाती धक-धक करने लगी। पर क्या करता? भय के कारण हाथ पैर सिकोड़कर, आँखें मूंदे चुपचाप पड़ा रहा।
इतने में एक आवाज आयी ‘धप्प'। जैसे कुछ गिर पड़ा। खरगोश बोला, 'बाप रे! मरा रे! सचमुच आसमान टूट पड़ा है। बिना मुड़कर देखे, अपनी जान बचाने के लिए वह वहां से दुम दबाकर भागा। बेतहाशा भाग रहा था और साथ-साथ चिल्ला रहा था, 'भागो रे भागो,! आसमान टूट पड़ा है। उसे इस तरह भागते देख दूसरे खरगोश भी घबरा उठे और सिर पर पांव रखकर उसके पीछे-पीछे भागने लगे।
कुछ दूरी पर इनको यूं चिल्लाकर भागते हुए देख हिरन भी घबराए। अवश्य कोई खतरा होगा ऐसा सोच वे भी पीछे-पीछे दौड़ने लगे। सियारों ने इन्हें भागते देखा तो सोचा सचमुच वन में कोई बड़ी आफत टूट पड़ी है। वे भी दौड़ने लगे। भारी भरकम शरीरवाला हाथी भी घबराहट के साथ इस दौड़ में शामिल हो गया। और भी अनेक पशु इस भगदड़ में साथ हो लिए।
सारे वन में बड़ा हंगामा मच गया। चारों ओर धूल के बादल छा गए। हल्ले-गुल्ले की आवाज सुनकर जंगल का राजा सिंह अपनी गुफा के बाहर निकला और देखने लगा कि बात क्या है ? यह देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वन के सारे प्राणी अपनी हिम्मत खोकर भय के मारे सरपट भाग रहे हैं। उसे यह जरा भी अच्छा नहीं लगा।
अपनी गुफा के सामने खड़े-खड़े उसने घोर गर्जना करते हुए कहा, 'रुको'! सारा जंगल सिंह गर्जना से कांप उठा। भागते हुए सभी प्राणी भयभीत होकर रुक गए। छलांगे मारता हुआ सिंह उसके सामने आ गया और धमकाते हुए पूछने लगा, 'सब के सब इस प्रकार क्यों भाग रहे हो?'
हाथी बोला- 'महाराज, आसमान टूट पड़ा है। अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं।
सिंहराज- 'आसमान को टूटते हुए क्या तुमने देखा है।'
हाथी बोला, 'नहीं महाराज! मैने तो नहीं देखा। बाघों को बोलते सुना, इन्होंने अवश्य देखा होगा।'
गैंडे बोले, 'नहीं महाराज, हमने भी नहीं देखा। बाघों को बोलते सुना, इन्होंने अवश्य देखा होगा।'
बाघ बोले, 'नहीं, हमने भी नहीं देखा। इन सियारों ने देखा है।'
सियार बोले, 'महाराज, हमने स्वयं नहीं देखा। हिरनों से सुना है। यही जाने।'
हिरन बोले, 'नहीं, नहीं। हम कुछ नहीं जानते। इन खरगोशों से पूछे ।'
खरगोश बोले, हम भी कुछ नहीं जानते । यह छोटा खरगोश ही जानता है।'
तब जंगल के राजा ने उससे पूछा, 'क्या तूने आसमान टूटते हुए स्वयं देखा है?'
छोटा खरगोश बोला, 'हां, महाराज! मैंने देखा है।'
सिंह- 'कहां देखा है?'
खरगोश- 'बेल-वन में महाराज! जहां मैं रहता हूं वहां मैं एक वृक्ष के तले लेटा था कि 'धप्प' की आवाज हुई और आसमान टूट पड़ा।'
सिंह- 'अगर ऐसा है तो मुझे वहां जाकर स्वयं देखना होगा। चल बता वह जगह कहां है?'
छोटा खरगोश कांपते हुए बोला, 'नहीं महाराज! मुझे वहां जाने में बहुत डर लगता है।'
सिंह ने प्यार से कहा, 'अरे, डरने की क्या बात है। मैं जो हूं तेरे साथ।'
सिंह ने खरगोश को अपनी पीठ पर बैठा लिया और सब वन-पशुओं के साथ जा पहुंचा बेल वन में। खरगोश को अपनी पीठ से उतारकर पूछा, 'अब बता, आसमान कहां टूट कर गिरा था?' भय के मारे खरगोश की घिग्घि बंध गयी। धूजते हुए दूर से वह जगह बताई। सिंह वहां जाकर जांच करने लगा। उसकी नजर जमीन पर पड़े एक पके बेल पर पड़ी । बेल उठाकर सब को दिखाते हुए वह जोरों से हँसने लगा।
सच्चाई क्या थी यह सभी प्राणी जान गये। शरम के मारे सब ने अपने सर झुका दिये थे। वे मन ही मन अपने को कोसने लगे कि बिना स्वयं देखे, खरगोश की बात में आकर हम मूर्ख बन गए। डरपोक खरगोश में तो नजर उठाकर किसी की ओर देखने की हिम्मत भी नहीं रह गयी थी। सिंहराज ने सबको रवाना किया।
सच्चाई क्या है इसे जानने की इच्छा सबको होती है। परंपरा से जो मान्यताएं मानी जाती आ रही हैं, उन्हें केवल मान लेने से अथवा किसी गुरु महाराज ने ऐसा कहा केवल इसलिए मान लेने से कोई सच्चाई को नहीं जान सकता। सचमुच सत्य क्या है? यह जानने के लिए हर एक को अपने भीतर स्वयं खोज करनी पड़ती है। अपने भीतर जो सच्चाई है पहले स्वयं उसका अनुभव करें और फिर उसे माने । पहले स्वयं जाने और फिर मानें तो कोई भ्रम-भ्रांति नहीं रह सकती।
✍ पुष्पा सावला
विपश्यना पत्रिका संग्रह (भाग-6)
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥
भवतु सब्ब मंङ्गलं !!

Premsagar Gavali

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