पुज्य विपश्यनाचार्य सत्यनारायण गोयंका गुरुजी द्वारा दिया गया उत्तर :
कर सकती ही नहीं, प्राप्त करती हैं।
अध्यात्म की जो सर्वोच्च अवस्था- अरहंत अवस्था है, वह भगवान् बुद्ध के समय पुरुषो तक सिमित नहीं थी। कितनी महिलाएं उस अवस्था तक जा पहुंची।
बर्मा में हमने देखा हमारे गुरुदेव के पास जो साधना की ऊंची अवस्थाएँ हैं, वे पुरुषो से अधिक महिलाओं को मिली।
पुरुष और महिला- क्या फर्क है? मन तो मन है। मन की विकृतिया (defilement) दोनों की एक प्रकार की है, और निर्मल हो जाये तो निर्मलता दोनों की एक प्रकार की हैं। जो हो विद्या सबके लिए है। मन को शुद्ध करती है।मानवमात्र के मन को शुद्ध करती है, जो भी साधना करे।