विपश्यना ध्यान साधना - एक अनमोल रत्न



विपश्यना ध्यान साधना - "एक अनमोल रत्न"*
मेरे पिताजी ने 1992 में जब अपना पहला विपश्यना आवासीय ध्यान शिविर किया, तब मैंने जिज्ञासावश पूछा, आपको यह विधि कैसी लगी ? उन्होंने तब कहा कि मैंने अपने अब तक के 65 साल के पूरे जीवन में कभी इससे ज्यादा शुद्ध विद्या नहीं देखी और यह भी जाना कि ज़िन्दगीं के वास्तविक अनुभव किताबों में नही मिलते।
इन दो शब्दों ने मेरे दिल को गहराई से छू लिया और मैं धम्मस्थली, जयपुर केंद्र में अगले कोर्स में शामिल होने चला गया। वहाँ हर बीतता दिन भीतरी सच्चाई को उजागर करने जैसा था। स्वयं द्वारा संवेदनाओं के सहारे सत्य का अनुभव करना एक अनुपम तथा भीतर तिरोहित व एकमेव होता भव्य अनुभव था .... वास्तव में यह इसी एक जीवन के भीतर एक नया पुनर्जन्म था। मैं अपने जीवन के उन पहले 10 सुनहरे दिनों को कभी नहीं भूल पाऊंगा।
दैनिक जीवन में भी, निजी जीवन, व्यवसायिक और सामाजिक सभी स्तरों मुझे कई फायदे महसूस हुए, वह शायद इस नये ताज़ा अनुभव से उपजे शीतल, शांत अथवा संतुलित दिमाग के कारण हो। तत्पश्चात लगभग हर साल मैं विगत 27 वर्षों में विपश्यना के विभिन्न शिविरों में शामिल होता रहा ।
जवाहरात पेशे में होने के नाते, विपश्यना ध्यान का पाना, मानों केवल एक हीरे की चट्टान का एक बड़ा खरड़ का टुकड़ा मिलने मात्र जैसा था, पर बाद में लगातार अभ्यास करना और सालाना 10 दिन का कोर्स करते करना, प्रत्येक बार उस हीरे की बार बार कटिंग, फैसेटिगं और पॉलिशिंग के समान था ... जिससे इस विपश्यना ध्यान-रत्न में हर बार नई रोशनी, नई चमक और नितांत नई आभा नज़र आनी शुरू हुई । अब निरंतर कई लंबे शिविरों बाद, गहन पारदर्शिता और अन्तरमन में सच्चाई की गंभीर खोज की यात्रा के बाद अब यह स्वअनुभव हो रहा है कि वास्तव में यह तो सम्पूर्ण मानव जाति के इतिहास में विगत 2500 सालों असंख्य लोगों द्वारा परखा हुआ एक सच्चा अनमोल रत्न है।
मैंने विपश्यना के अभ्यास से सीखी समता विद्या को पूरी तरह से अपनी व्यावसायिक नैतिकता के रूप में अपनाया है और दुनिया भर के ग्राहकों से मिलते समय व अपनी पेशेवर यात्राओं के मध्य इस विद्या के व्यवहारिक पक्षों का उपयोग किया है। साथ ही सन 2003 में मिले एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार का पूरा श्रेय केवल विपश्यना द्वारा विकसित गहरी एकाग्रता को ही समर्पित हैं ।
इस मनुष्य जीवन को सार्थक करने हेतु प्रत्येक व्यक्ति को चाहे वह कितना भी व्यस्त हो या उसके पास गिनाने के लिये हजार ज़रूरी काम हो, कम से कम एक बार विपश्यना शिविर का अनुभव अवश्य करना चाहिये .... क्योंकि यह सुखी जीवन जीने कि कला हैं और वास्तव में मशीनी दिनचर्या से एक बार विराम लेकर इस विद्या के अनुभव द्वारा जीवन को सार्थक करना यंत्रवत जीने से अधिक महत्वपूर्ण है। संक्षेप में विपश्यना साधना आत्मोंन्नति और उत्थान के लिए एक जीवन को बदलने वाला अनुभव हैं ।
ऐसा कहा जाता है कि आज के इस व्यावसायिक जगत में कुछ भी मुफ्त नहीं होता है, लेकिन हम यहाँ जोड़ सकते हैं....विपश्यना के अलावा, क्योंकि इन शिविरों में शामिल होने की कोई फीस नहीं ली जाती, यहाँ तक कि रहने, खाने और इस बेशक़ीमती विद्या सिखाने का भी कोई शुल्क नहीं देना होता हैं, हालाँकि स्वेच्छा से चाहें तो आप दान कर सकते हैं पर 10 दिवसीय कोर्स के बाद चुकि अब आप एक पुराने साधक बन चुके हैं । शेष जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने और जीवन का उद्देश्य खोजने के लिए “आत्म-अवलोकन के माध्यम से आत्म-मूल्यांकन” द्वारा यह केवल 10 दिनों का निवेश मात्र हैं जिसके इस जीवन और अगले जीवन में दूरगामी परिणाम आते हैं ।
सभी प्राणी सुखी हो, शांत हो एवम् सभी बँधनों से मुक्त हों
इन्हीं मगंल कामनाओं के साथ 🙏
दिनेश मालपानी,
रत्न एवं आभूषण निर्यातक
आयु 59 वर्ष
मैसर्स जैम्स एक्सपोर्ट सेन्टर,
जयपुर, भारत
ट्रस्टी, धम्मथली विपश्यना केन्द्र, जयपुर एवं
ट्स्टी विपश्यना अरण्य, चाकसू, जयपुर
मो : 9829165666
इमेल : dineshmalpani@yahoo.com
विश्वभर में उपलब्ध :
www.dhamma.org
https://chat.whatsapp.com/G7SRs4mN9lQ6VNlbsk6Tdu
Please join this WhatsApp group for vipassana hindi pravchan by this