🌹किसागोतमी जब कभी भूतकाल का सिंहावलोकन करती तब भगवान के प्रति कृतज्ञता के भावो से विभोर हो उठती।
' मै कितनी भाग्यशालिनी हूँ कि मुझे भगवान तथागत जैसे कल्याणमित्र मिले।
' मै कितनी भाग्यशालिनी हूँ कि मुझे भगवान तथागत जैसे कल्याणमित्र मिले।
🌻कल्याणमित्र की संगत मिलती है तो जीवन मंगल से भर उठता है।
दुर्जन से दुर्जन व्यक्ति इस सत्संगति से सज्जन हो जाता है।
दुखियारा दुःख- विमुक्त हो जाता है।
दुर्जन से दुर्जन व्यक्ति इस सत्संगति से सज्जन हो जाता है।
दुखियारा दुःख- विमुक्त हो जाता है।
🍁वह दुःख का भोगना छोड़कर दुःख का दर्शन कर लेता है।दुःख के मूल कारण का दर्शन कर लेता है।
दुःख-विमुक्ति के मार्ग पर स्वयं चलकर उसका दर्शन कर लेता है, और इस प्रकार नितांत दुःख-निरोध अवस्था परमपद निर्वाण का दर्शन कर लेता है।
दुःख-विमुक्ति के मार्ग पर स्वयं चलकर उसका दर्शन कर लेता है, और इस प्रकार नितांत दुःख-निरोध अवस्था परमपद निर्वाण का दर्शन कर लेता है।
🌷सत्पुरुषो की संगति करनी चाहिये, इससे संगति करने वालो का ज्ञान बढ़ता है।
सत्पुरुषो की संगति करने से व्यक्ति सब दुःखो से छूट जाता है।
सत्पुरुषो की संगति करने से व्यक्ति सब दुःखो से छूट जाता है।
🌹गुरूजी--
हमे अपने इष्टदेव या इष्टदेवी को प्रसन्न करना है तो अपने आचरण को सुधारें।
समझे की कोई व्यक्ति देवलोक में देव या देवी बनकर कैसे जन्म ले पाया?
उसने अपने मनुष्य जीवन में अच्छे काम किये, उसका आचरण ठीक था। तो उसकी सदगति हुई।
हमे अपने इष्टदेव या इष्टदेवी को प्रसन्न करना है तो अपने आचरण को सुधारें।
समझे की कोई व्यक्ति देवलोक में देव या देवी बनकर कैसे जन्म ले पाया?
उसने अपने मनुष्य जीवन में अच्छे काम किये, उसका आचरण ठीक था। तो उसकी सदगति हुई।
🌻हमे इससे प्रेरणा मिले, हम भी इसी प्रकार अच्छे काम में लगें, सदाचरण करें तो जो सचमुच देव है, देवी है, वे हमारे इस प्रकार बदलते हुए आचरण को देख करके प्रसन्न ही होंगे।
🍁ओर बड़ी बात तो यह होगी कि जैसे जैसे किसी सही भक्त के चित्त में निर्मलता आती चली जायेगी और इस निर्मल चित्त से वह अपने इष्टदेव या देवी को नमन करेगा तो सच्चाई यह है कि वे इष्टदेव या देवी भी उसे नमन करेंगे।उसके सदाचरण को नमन करेंगे।
🌺इसलिए संत कबीर ने कहा-
कबीरा मन निर्मल भया,
जैसे गंगा नीर।
पीछे पीछे हरि चलें,
कहत कबीर कबीर।।
कबीरा मन निर्मल भया,
जैसे गंगा नीर।
पीछे पीछे हरि चलें,
कहत कबीर कबीर।।
💐सिद्दार्थ गौतम नाम का व्यक्ति जब सम्यक सम्बुद्ध बना तो देवलोक के देवता और ब्रहमलोक के ब्रह्मा उनका पूजन करने आते थे, सम्मान करने आते थे, उन्हें नमन करने आते थे।
🌷ओर भगवान ने अपने शिष्यो को भी ऐसी ऊँची अवस्था तक पहुँचाया कि जहाँ देवता उन्हें नमन करने लगें।
सुनीत नाम के एक भंगी को, जिसे लोग अछूत कहकर दुत्कारते थे, भगवान ने अपनी शरण में लेकर विपश्यना सिखाते सिखाते अरहंत अवस्था तक पहुँचाया और जिनके दिव्यदृष्टि थी उन्होंने देखा की कैसे देवलोक के देवता और ब्रह्म लोक के ब्रह्मा उसको नमस्कार करने लगे।
सुनीत नाम के एक भंगी को, जिसे लोग अछूत कहकर दुत्कारते थे, भगवान ने अपनी शरण में लेकर विपश्यना सिखाते सिखाते अरहंत अवस्था तक पहुँचाया और जिनके दिव्यदृष्टि थी उन्होंने देखा की कैसे देवलोक के देवता और ब्रह्म लोक के ब्रह्मा उसको नमस्कार करने लगे।
🌼सचमुच् अपने को परम उच्च अवस्था पर पहुँचाने में ही सही पूजा है।