
भिक्षुओ जिसे पश्चाताप नहीं होता, उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मुझे प्रमुद्ता हो l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे पश्चाताप न हो उसे प्रमुद्ता हो l
भिक्षुओ, जिसे प्रमुद्ता हो उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मुझे प्रीति उत्पन्न हो l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे प्रमुद्ता हो उसे प्रीति उत्पन्न हो l
भिक्षुओ, जिसे प्रीति उत्पन्न हो उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मुझे प्रश्रब्धि उत्पन्न हो l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे प्रीति प्राप्त हो उसे प्रश्रब्धि उत्पन्न हो l
भिक्षुओ, जिसे प्रश्रब्धि प्राप्त हो उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मुझे सुख प्राप्त हो l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे प्रश्रब्धि प्राप्त हो उसे सुख उत्पन्न हो l
भिक्षुओ, जिसे सुख प्राप्त हो उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मुझे समाधी प्राप्त हो l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे सुख प्राप्त हो उसे समाधी प्राप्त हो l
भिक्षुओ, जिसे समाधी प्राप्त हो उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मुझे यथार्थ-ज्ञान प्राप्त हो l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे समाधी प्राप्त हो उसे यथार्थ-ज्ञान प्राप्त हो l
भिक्षुओ, जिसे यथार्थ-ज्ञान प्राप्त हो उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मुझे निर्वेद-वैराग्य प्राप्त हो l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे यथार्थ-ज्ञान प्राप्त हो उसे निर्वेद-वैराग्य प्राप्त हो l
भिक्षुओ, जिसे निर्वेद-वैराग्य प्राप्त हो उसे यह इच्छा करने के आवश्यकता नहीं होती कि मै विमुक्ति ज्ञान-दर्शन साक्षात करू l भिक्षुओ यह स्वाभाविक धर्म है कि जिसे निर्वेद-वैराग्य प्राप्त हो वह विमुक्ति ज्ञान-दर्शन साक्षात करे l
इस प्रकार भिक्षुओ, निर्वेद-वैराग्य होने से विमुक्ति ज्ञान-दर्शन की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है ; यथार्थ-ज्ञान दर्शन होने से निर्वेद-वैराग्य की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है ; समाधी होने से यथार्थ-ज्ञान दर्शन की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है ; सुख होने से समाधी की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है ; प्रश्रब्धि होने से सुख की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है ; प्रीति होने से प्रश्रब्धि की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है ; प्रमुद्ता होने से प्रीति की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है ; पश्चाताप न होने से प्रमुद्ता की प्राप्ति होती है, यही उसका परिणाम है l कुशल धर्मो (शीलो) का पालन करने से पश्चाताप नहीं होता, यही उसका परिणाम है l इस प्रकार भिक्षुओ, धर्मो से धर्मो की प्राप्ति होती है, धर्मो से धर्मो की पूर्ति होती है l