
भिक्षुओ, अधर्म को भी जानना चाहिए तथा अनर्थ को भी जानना चाहिए l धर्म को भी जानना चाहिए तथा अर्थ(हित) को भी जानना चाहिए l अधर्म और अनर्थ को जान कर ; धर्म तथा अर्थ को जान कर धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिये l
“ भिक्षुओ, अधर्म तथा अनर्थ किसे कहते है ?
प्राणी-हिंसा, चोरी, काम-भोग सम्बन्धी मिथ्याचार, झूठ, चुगली, कठोर वचन, व्यर्थ बातचीत, लोभ, द्वेष, मिथ्या दृष्टि – भिक्षुओ, यह अधर्म तथा अनर्थ कहलाता है l
“ भिक्षुओ, धर्म तथा अर्थ(हित) किसे कहते है ?
प्राणी-हिंसा से विरत, चोरी से विरत, काम-भोग सम्बन्धी मिथ्याचार से विरत, झूठ बोलने से विरत, चुगली खाने से विरत, कठोर वचन बोलने से विरत, व्यर्थ बातचीत से विरत, निर्लोभ-पन, द्वेष का न होना तथा सम्यक दृष्टि – भिक्षुओ, यह धर्म तथा अर्थ कहलाता है l
भिक्षुओ, अधर्म को भी जानना चाहिए तथा अनर्थ को भी जानना चाहिए l धर्म को भी जानना चाहिए तथा अर्थ को भी जानना चाहिए l अधर्म और अनर्थ को जान कर ; धर्म तथा अर्थ को जान कर धर्म के अनुसार आचरण करना चाहिये – यह जो कहा गया इसी आशय से कहा गया l