समता से संस्कार क्षीण होते हैं।

अंतर्मन की गहराईओं में जो कुछ हो रहा है उसे जाने और समता में रहें।
क्रोध जागा और शरीर में अग्नि प्रधान परमाणु उत्पन्न होने लगे।

भय जाएगा तो वायु प्रधान परमाणु उत्पन्न होने लगे और उनकी संवेदना शरीर में होने लगी।



शरीर में जलन की संवेदना हो रही है या कम्पन धुजन की हो रही है, कितना गहरा सम्बन्ध है चित्त का शरीर के साथ। जिस प्रकार के नए संस्कार का निर्माण करते हैं, शरीर में उसी प्रकार की संवेदना का निर्माण करते हैं।
जब पुराने संस्कार बाहर निकलेंगें तो संवेदना पैदा करके ही निकलेंगें।

हर क्रोध के संस्कार ने अग्नि- तत्व प्रकट किया था। अब यदि पुराने क्रोध के संस्कार बाहर आ रहें हैं तो पुनः अग्नि धातु ही जागेगी। गर्मी महसुस होगी। इस प्रकार उत्पन्न संवेदना को यदि हम समता से देखतें जायेंगे और प्रतिक्रिया नही करेंगे तो यह संग्रहित संस्कार स्वतः क्षीण होते चले जायेंगे।

अतः प्रमुख समता है।

🌹🌹🌹 सबका मंगल हो 🌹🌹🌹

Premsagar Gavali

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