तथागत की धर्मवाणी सदा सचेत करती रहे।


बुद्धों की सही वंदना किस प्रकार की जाती है इसे वे सतत ध्यान में रखें--

"इमाय धम्मानुधम्म पटिपत्तिया बुद्धं पूजेमि।”

यानी धर्मानुधर्म के प्रतिपादन द्वारा ही मैं बुद्ध का पूजन करता हूं।

शील समाधि और प्रज्ञा को जीवन में उतारना ही धर्मानुधर्म का प्रतिपादन है और यही बुद्ध की सही पूजा है। इस समझबूझ को सबल बनाए रखना होगा।

किसी के द्वारा पूछे जाने पर भगवान ने स्पष्ट शब्दों में बताया कि बुद्धों की सही वंदना कैसे होती है--

आरद्ध विरिये पहितत्ते, निच्चं दळ्ह परक्क मे।
समग्गे सावके पस्स, एतं बुद्धान वन्दनं ॥

- देखो! ये श्रावक किस प्रकार एकत्र होकर समग्र रूप से साधना में निरत हैं । चित्त-शुद्धि के लिए नित्य दृढ़ पराक्रम करते रहते हैं। सचमुच यही है बुद्धों की वंदना।।

भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के कुछ ही समय पूर्व जब उन पर दिव्य पुष्पवर्षा हुई तब भी उन्होंने इसी तथ्य को बहुत साफ शब्दों में दुहराया -

"न खो आनन्द! एत्तावता तथागतो सक्क तो वा होति, गरुक तो वा, मानितो वा पूजितो वा, अपचितो वा । _

- “आनंद! इस प्रकार तथागत सत्कृत, गुरुकृत, मानित, पूजित नहीं होते।

यो खो आनन्द! भिक्खु वा भिक्खुनी वा उपासकोवा उपासिकावा धम्मानुधम्मप्पटिपन्नो विहरति सामिचिप्पटिपन्नो अनुधम्मचारी, सो तथागतं सक्क रोति गरूक रोति मानेति पूजेति अपचियति परमाय पूजाय। ....

(बल्कि)आनंद! कोई भिक्षु या भिक्षुणी, उपासक या उपासिका परम पूजन के लिए धर्म के मार्ग पर आरूढ़ हो विहरता है, यथार्थ मार्ग पर आरूढ़ हो धर्मानुसार आचरण करने वाला होता है तब तथागत उससे सत्कृत, गुरुकृत, मानित, पूजित होते हैं।

एवं हि वो आनन्द! सिक्खतब्बन्ति।"

- ऐ आनंद! तुम्हें यही सीखना चाहिए।

बुद्धों की सही वंदना शील पालन करने से होती है, समाधि का अभ्यास करने से होती है और प्रज्ञा जाग्रत करके सजग सचेत हो समता में स्थित रहने से होती है।

वंदना संबंधी भगवान की यह वाणी सभी साधकों और अन्यान्य पाठकों के मानस में सदा गूंजती रहे और वे भलीभांति समझते रहें कि इन पदों के पाठ से हम अपने मन में प्रेरणा जगाएं कि जिन-जिन दुर्गुणों से सर्वथा विमुक्त होकर और जिन-जिन सद्गुणों से पूर्णतया संपन्न होकर बुद्ध बुद्ध बने, हम भी उस आदर्श को सामने रखते हुए कदम-कदमशील, समाधि, प्रज्ञा के धर्मपथ पर चलते रहेंगे और सभी दुर्गुणों को दूर करने और सद्गणों का संपादन करने के पुण्यकार्य में सन्नद्ध रहेंगे। मानवी मानस के सभी संतापों को सर्वथा निर्मूल कर सकने की क्षमता रखने वाली इस विपश्यना विद्या को थोथे कर्मकांडों से दूर रखेंगे। इसे यथाशक्ति धारण कर लाभान्वित होते रहेंगे।

यह धर्मचेतना बनी रहेगी तो सचमुच बड़ा मंगल होगा, बड़ा कल्याण होगा।

कल्याणमित्र
सत्यनारायण गोयन्का

Premsagar Gavali

This is Adv. Premsagar Gavali working as a cyber lawyer in Pune. Mob. +91 7710932406

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