
इस साधना को करते करते एक नहीं सौ नहीं ,हजारो की संख्या में जो लोग मांसाहारी जन्म से थे ,ऐसे परिवार में जन्मे ,ऐसे परिवार में पले ,ऐसे समाज में रहे की वहाँ पर मांसाहार बुरा नहीं माना जाता ,कैसे विपस्सना करते करते दो चार पांच शिविर में शुद्ध शाकाहारी हो गए ।??क्यों हो गए ??
किसी ने कहा नहीं की तुम मांसाहारी रहोगे तो नरक मिल जाएगा ।ऐसा कहना का कोई अवसर भी नहीं होता ।निकम्मी बात ।अब वे अपनी संवेदना देखने लगे ।
संवेदना देखते देखते आदमी उस अवस्था तक पहुँच जाता है की किस प्रकार का भोजन किया मैंने ??
सात्विक भोजन किया तो इस प्रकार की संवेदना होगी ।
इस तरह का दूषित भोजन किया तो संवेदना काटने वाली होगी ।
आखिर जो आहार लेते है ,किस तरह का आहार है ??
वह पशु है ,वह पक्षी जिसको मार करके हम मांस खा रहे है ,वह जीवन भर क्या करता रहा ??
मनुष्य है तो यह आशा की जा सकती है की कभी उसे विपश्यना मिल जाये ,कभी उसे सच्चाई को देखने का रास्ता मिल जाये तो कोई क्षण तो रागविहीन रह सके ,द्वेश्विहीन रह सके ।
इस प्रकार अपने पुराने स्वाभाव को तोड़ने का काम कुछ तो कर सके ।
पशु से यह आशा नहीं कर सकते ,पक्षियों से यह आशा नहीं कर सकते ,मछलियों से आशा नहीं कर सकते।
उनको कुदरत ने यह शक्ति ही नहीं दी की वे अपने भीतर सच्चाई का काम करे । तो प्रतिक्षण वे राग ही पैदा करते है ,द्वेष ही पैदा करते है ।
ऐसा जीवन जीते है ,मन में जो कुछ पैदा करोगे ,हमारे रेशे रेशे में राग की तरंगे ,द्वेष की तरंगे अरे भीतर इतना राग भरा ,इतना द्वेष भरा ,उसी को निकलना कठिन हो गया और तुम भीतर से इनपुट दिए जा रहे हो राग ही राग का ,द्वेष ही द्वेष का ।
कैसे बाहर निकालोगे ???
ऐसा समझने लगेंगे ।यह केवल उपदेशो से नहीं होता या जबरदस्ती किसी को कहे की तुम वेजीटेरियन बन जाओ कल से तो तुम मुक्त हो जाओगे ,भगवान् खुश हो जायेंगे ,नहीं चलती बात ।

हम दूषित तरह का आहार कैसे लेंगे ??
अपने आप निर्मल बनते चले जायेंगे ,आहार अपने आप शुद्ध होता चला जाएगा !