पूज्य गुरुजी की दिल्ली यात्रा

(दिसम्बर 29, 2003 से जनवरी 10, 2004 तक)
दिवस 1, दिसम्बर 29, 2003



भारत की राजधानी दिल्ली तथा इसके आसपास के इलाकों में विगत एक दशक में धर्म का खूब प्रचार-प्रसार हुआ है।
पू. गुरुजी ने गत वर्ष दिल्ली जाने की योजना बनायी थी, लेकिन अन्य व्यस्तताओं के कारण उन्हें वह कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था। इस बार उनके जाने का संकल्प दृढ़ था। दिसम्बर 29 को वे हवाई जहाज से रवाना हुए। आशंका थी कि घने कुहरे के कारण उड़ान में विलम्ब होगा, लेकिन ठीक समय पर धूप निकल आयी और इनका विमान मात्र आधा घंटा देर से दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरा। शाम को उन्होंने आचार्यों तथा प्रबंधकों से भेंट की और अपने दिल्ली प्रवास के दौरान निर्धारित कार्यक्रमों पर बातचीत की।
दिवस 2, दिसम्बर 30, 2003
सुबह पू. गुरुजी नवनिर्मित विपश्यना केंद्र ‘धम्मपट्ठान' गये। यह हरियाणा के सोनीपत जिले में कम्मासपुर गांव के निकट अवस्थित है। बहुत से पुरातत्त्वविदों ने इस गांव का सम्बंध ऐतिहासिक ‘कम्मासदम्म निगम' से जोड़ा है जहां भगवान बुद्ध ने कुरुओं को सतिपट्टान का उपदेश दिया था। नहर से सटी कृषिप्रधान गांव की यह हरी-भरी चित्ताकर्षक जमीन कम्मासपुर के समर्पित साधकों ने खरीदी। खूब तेजी से निर्माण कार्य आरंभ हुआ। अत्यंत शांत क्षेत्र में स्थित इस केंद्र को गंभीर साधकों के लिए सुविधा संपन्न बनाया गया है, जिसमें शौच-स्नानागार युक्त 58 एकाकी कमरे हैं, दो ध्यान कक्ष हैं और एक सुंदर शून्यागारयुक्त पगोडा है। ईंट तथा सीमेंट से पक्के रास्ते बनाए गये हैं ताकि वर्षा ऋतु में भी साधकों को चलने में कठिनाई न हो।
यह निर्णय लिया गया है कि केंद्र पर केवल सतिपट्ठान, दस-दिवसीय विशेष शिविर तथा गंभीर दीर्घ शिविर ही आयोजित हों। इस प्रकार भारत में यह पांचवां केंद्र है जिसमें पू. गुरुजी ने दीर्घ शिविर आयोजित करने की अनुमति दी है।
सद्यः संपन्न 30 दिवसीय शिविर के साधक प्रमुख विपश्यनाचार्य श्री सत्यनारायणजी गोयन्का (पू. गुरुजी) से मिलने का सुअवसर नहीं खोना चाहते थे, इसलिए वे रुक गये। प्रातःकाल ही पहुँच कर पू. गुरुजी ने पगोडा के केंद्रीय कक्ष में ध्यान किया। शीत-लहरी के बावजूद आसपास के क्षेत्रों से आये हुए लगभग चार सौ साधक शेष शून्यागारों में, दोनों ध्यान कक्षों में तथा कार्यालय में बैठ कर अपने विपश्यनाचार्य के साथ इस ऐतिहासिक स्थल पर ध्यान करके लाभान्वित हुए।
उसके बाद पू. गुरुजी बड़े ध्यान कक्ष में गये जहां साधना सत्र के पश्चात सभी साधक एकत्र हुए थे। उन्होंने संक्षेप में कम्मासपुर गांव के महत्त्व पर प्रकाश डाला जो प्राचीन काल में ‘कम्मासदम्म' कहलाता था। कम्मासदम्म का शाब्दिक अर्थ कल्मषदम्य अर्थात 'आसवों का क्षय है।
बाद में वे मेरठ से आये साधकों के एक समूह से मिले। सायंकाल उन्होंने सोनीपत के एक प्रमुख बोर्डिंग स्कूल के सभा भवन में सार्वजनिक प्रवचन दिया, जिसके जीवंत प्रश्नोत्तर सत्र से 500 से अधिक लोगों को धर्मलाभ प्राप्त हुआ ।
दिवस 3, दिसम्बर 31, 2003
सुबह में पू. गुरुजी दिल्ली क्षेत्र के न्यासियों, बाल शिविर-शिक्षकों तथा सहायक आचार्यों से मिले ।
श्री टंडनजी ने संक्षेप में दिल्ली में धर्म सम्बंधी गतिविधियों के बारे में बताया। उन्होंने निम्नांकित उद्धरण देकर यह बताया कि दिल्ली क्षेत्र के धर्मसेवक इसी तरह घुलमिल कर रहते और काम करते हैं जैसे भगवान ने कहा था -
- समग्गा सम्मोदमाना
अविवदमाना खीरोदकीभूता
अञमर्श पियचक्खूहि
सम्पस्सन्ता विहरिस्सन्ती'ति ।
(सं. नि. २.४.२ ६७, पञ्चक असुत्त)
(जो मेरे उपदेशित धर्म को समझेंगे यानी धारण करेंगे वे) - मिलजुल कर रहेंगे, बिना झगड़ा कि ये सौहार्दपूर्वक दूध-पानी की तरह मिल कर, एक-दूसरे को स्नेह से देखते हुए विहार करेंगे ।
पू. गुरुजी को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि इस क्षेत्र के सभी साधक तथा सहायक आचार्य मिलजुल कर काम करते हैं । वस्तुतः धर्मसेवकों तथा सहायक आचार्यों की मिलकर काम करने की जो भावना है उससे स्पष्ट हो जाता है कि विपश्यना की जड़ें यहां कितनी गहरी हैं और इसी से बहुत से लोगों को धर्मलाभ मिल रहा है।
सायंकाल पू. गुरुजी एक व्याख्यान देने ‘विश्व हिन्दू परिषद' के मुख्यालय गये। वहां उन्होंने विपश्यना की विधि के बारे में बताया तथा इस देश में बुद्ध के बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने बताया कि यह कहना बिल्कुल गलत है कि बुद्ध के उपदेश ने हमारे देश को कमजोर बनाया। उन्होंने यह भी कहा कि बुद्ध ने गणतंत्र तथा राजतंत्र दोनों की सुरक्षा पर विशेष बल दिया। उन सभी सम्राटों के पास , जिन्होंने बुद्ध की शिक्षा का अनुसरण किया था, बहुत बड़ी सैन्य शक्ति थी और उन्होंने अपने साम्राज्य की सुरक्षा पर खूब ध्यान दिया था। देश की सुरक्षा कैसे की जाय और छोटे-बड़े सभी राज्य शांति तथा सद्भावपूर्वक कैसे रहें, अशोक इसका देदीप्यमान उदाहरण रहा।
दिवस 4, जनवरी 1, 2004
यदि आपको एक सुनियोजित विपश्यना केंद्र देखना हो, जहां नामांकन के लिए प्रवेशद्वार पर ही सुंदर प्रबंध हो, सुंदर आवासीय क्षेत्र हो, शांत तथा सुंदर दीखने वाले साधना कक्ष हों, सुंदर परिदृश्य हो, जहां की आंतरिक सड़कें चौड़ी, सीमेंट की बनी हों तथा जिनके दोनों ओर हरे-भरे वृक्ष हों तो ‘धम्मसोत' को देखिये। ठंढ के मौसम में सुबह-सुबह आये साधकों का धम्मसेवकों ने प्रवेशद्वार पर ही बड़ी गर्मजोशी तथा गरमागरम चाय से स्वागत किया।
पू. गुरुजी धम्मसोत में सुबह जरा देर से आये। जहां पगोडा बनाने का काम आरंभ होने वाला था, उसी स्थल पर एक शामियाना के नीचे साधक ध्यान के लिए एकत्र हुए थे। सामूहिक साधना सत्र की समाप्ति के पूर्व पू. गुरुजी वहां पहुंचे। उन्होंने साधकों को मैत्री दी और मेत्ता भावना करते, मेत्तासुत्त का पाठ करते हुए, परिसर के चारों ओर घूमे ।
भोजन के समय दिल्ली के साधकों की आपस में मिलकर काम करने की प्रबल भावना उस समय विशेषरूप से दृष्टिगोचर हुई जबकि सभी साधकों को गरमागरम भोजन परोसा गया। यद्यपि साधक अनुमान से काफी अधिक संख्या में आये थे।
सायंकाल पू. गुरुजी ने दस-दिवसीय शिविर के साधकों को आनापान दिया। चूंकि शहर में जहां गुरुजी ठहरे थे, वहां से केंद्र जाने में दो घंटे लगते थे, इसलिए उनका पूरा दिन धम्मसोत पर ही बीता।
दिवस 5, जनवरी 2, 2004
पू. गुरुजी ने तालकटोरा के भीतरी स्टेडियम में एक सार्वजनिक प्रवचन दिया। यह शहर के बड़े सभा भवनों में से एक है। 500 से अधिक साधकों ने साधना क क्षमें प्रवचन के पहले एक घंटे तक ध्यान किया। सामूहिक साधना के बाद अन्य अनेक लोग धर्मप्रवचन सुनने आये।
यहां पू. गुरुजी ने बताया कि विपश्यना का अभ्यास किस प्रकार समाज में शांति तथा सद्भावना की कुंजी है। उन्होंने बताया कि दस-दिवसीय विपश्यना शिविर में क्या किया जाता है, और लोगों का आह्वान किया कि वे बुद्ध की विश्वजनीन शिक्षा को आजमाकर तो देखें।
श्रोताओं द्वारा पूछे गये प्रश्नों की झड़ी लग गयी। यद्यपि प्रश्नोत्तर सत्र लगभग 45 मिनट तक चला, परंतु पुराने साधकों द्वारा पूछे गये कुछ प्रश्नों को बाद के लिए छोड़ दिया गया। एक टी.वी. चैनल और प्रेस ने इस कार्यक्रम को सविस्तार प्रसारित किया। प्रवचन पश्चात पू. गुरुजी पत्रकारों से मिले । एक अन्य टी.वी. चैनल ने अलग से उनका साक्षात्कार लिया।
दिवस 6, जनवरी 3, 2004
'विपश्यना' द्वारा जेल में सुधार लाने के कार्यक्रमों में तिहाड़ जेल का कार्यक्रम सबसे सफलतम है। इस जेल को शांति-क्षेत्र बनाने में वहां के कर्मचारियों का उत्साह और समर्थन, धम्मसेवकों की लगन, समर्पित भाव और कड़ी मेहनत का योगदान तो है ही, परंतु सर्वाधिक योगदान के दियों की ईमानदारी और सद्भाव का है।
पू. गुरुजी आज कैदियों को संबोधित करने तथा 'धम्मतिहाड़' देखने गये जो तिहाड़ जेल के भीतरी भाग में है। 'धम्मतिहाड़' अब शीघ्र ही एक दशक पूरा करने वाला है। उन्होंने कहा कि जेल की बड़ी और ऊंची दीवारों के अन्दर बंद रहना एक बड़ा दुःख है, लेकिन अपने मन के विकारों के बंधन में रहना उससे भी बड़ा दुःख है। उन्होंने बताया कि कैसे विपश्यना द्वारा विकारों से, दुःखों से बाहर निकला जा सकता है, मुक्त हुआ जा सकता है।
उसके बाद पू. गुरुजी 'धम्मतिहाड़' के धम्महॉल में गये जहां कर्मचारी और कैदी धम्मसेवक एकत्र थे। पू. गुरुजी ने वहां ध्यान किया और मेत्ता दी। वे केंद्र के चारों ओर घूमे और वहां की सुविधाओं का निरीक्षण किया। धम्मतिहाड़' में कुछ नये शून्यागार बने हैं। चार वर्षों से यहां 20-दिवसीय शिविरों का आयोजन किया जाता है। ‘धम्मतिहाड़' छोड़ने के पहले पू. गुरुजी तथा माताजी ने कर्मचारियों के साथ चाय पी।
दिवस 7, जनवरी 4, 2004
आज का दिन पू. गुरुजी के लिए बड़ा कठिन था। सुबह ही वे परम पूज्य विश्व विश्रुत धर्मगुरु दलाईलामा से मिलने निकले। वर्षों बाद दो धर्मगुरु आपस में मिल रहे थे। मुलाकात के बाद वे शीघ्र ही 'होलिस्टिक सेन्टर', सातबारी आये। यहां “विश्वशांति” पर प्रवचन देने के लिए उनसे अनुरोध किया गया था। पू. गुरुजी ने यह बात फिर दोहराई कि समाज में शांति तभी आ सकती है जबकि व्यक्ति के भीतर शांति हो। अर्थात समाज में शांति के लिए हर एक व्यक्ति के भीतर शांति होनी आवश्यक है। देश में शांति हो, इसके लिए समाज में शांति आवश्यक है और विश्व में शांति हो, इसके लिए देश में शांति आवश्यक है। अपने भीतर शांति प्राप्त करने के लिए विपश्यना एक विश्वजनीन विधा है। प्रवचन के बाद उन्होंने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिये।
भोजन के बाद वे 'लॉजिक स्टेट फॉर्म गये, जहां एक-दिवसीय शिविर का आयोजन किया गया था। इस शिविर में भाग लेने के लिए कंपकंपाती ठंढ की परवाह न करते हुए लगभग 800 साधक एकत्र थे। स्थानीय आचार्यों द्वारा बड़ी सावधानीपूर्वक योजना बनायी गयी थी और धम्मसेवा के सभी चरणों में उनकी सहभागिता से शिविर के लिए बड़ा अच्छा वातावरण बना था। भोजन और चाय का बड़ा सुंदर प्रबन्ध था। पू. गुरुजी ने मेत्ता भावना के साथ शिविर समापन किया और अपने संक्षिप्त प्रवचन में बताया कि साधकों को दो बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
१) प्रतिदिन सुबह और शाम एक-एक घंटे की साधना।
२) दिन भर अपने आचरण का ख्याल ।
साधक को यह जांचते-परखते रहना चाहिए कि उसमें अच्छे के लिए सुधार हो रहा है या नहीं! कभी-कभी कुछ लोगों में सुधार बहुत धीरे-धीरे आता है लेकिन यदि वह नियमित ध्यान करता रहे तो अच्छे के लिए परिवर्तन अवश्य होगा। कभी-कभी जब कि सी में पुरानी आदतों के कारण क्रोध और घृणा उत्पन्न होती है तो उसे यह जांचना चाहिए कि कितनी जल्दी वह अपने अंदर के क्रोध और घृणा को देख लेता है और कितनी जल्दी वह उन लोगों के प्रति मेत्ता भावना करने लगता है । प्रवचन के बाद अलग से एक प्रश्नोत्तर सत्र हुआ और छोटी सभा हुई जिसमें देश के विभिन्न भागों से आये साधक पू. गुरुजी से मिले।
दिवस 8, जनवरी 5, 2004
आज पू. गुरुजी को अनेक विद्यालयों के प्राचार्यों के बीच एक प्रवचन देना था लेकिन स्वास्थ्य में नरमी के कारण इस कार्यक्रम को रद्द करना पड़ा। दशकाधिक समय में यह पहला अवसर था जबकि पू. गुरुजी को अल्प अवधि की सूचना पर प्रवचन रद्द करना पड़ा।
“मूल्यों पर आधारित शिक्षा” कार्यक्रम के संयोजक एवं विपश्यना के आचार्य प्रो. धर से पू. गुरुजी के स्थान पर प्रवचन देने का अनुरोध किया गया। उनके प्रवचन का विषय था 'आत्म-निरीक्षण द्वारा जीवन के उच्च आदर्शों की जानकारी। श्रोताओं ने इसे बहुत सराहा । शाम होते-होते पू. गुरुजी ठीक हो गये और उन्होंने विपश्यना के एक पुराने साधक तथा भारत सरकार के मंत्री के निवास-परिसर में चुने हए शिक्षाविदों, अधिकारियों तथा राजनीतिज्ञों को संबोधित किया।
दिवस 9, जनवरी 6, 2004
आज प्रात: पू. गुरुजी साधकों से अलग-अलग मिले। तत्पश्चात उन्होंने कुछ ऐसे काम किए जो कि पेंडिंग थे ।
शाम को मिलने वाले कुछ अधिक आये। अपने सहायकों से पू. गुरुजी ने आगे के कार्यक्रम के बारे में विचार-विमर्श किया। चूंकि आज पू. गुरुजी को क ही जाना नहीं था, इसलिए उन्हें कुछ आराम करते हुए स्वास्थ्य लाभ करने का मौका मिला।
दिवस 10, जनवरी 7, 2004
सुबह पू. गुरुजी बहाई टेम्पल गये। दर्शकों के लिए जो सुविधाएं वहां उपलब्ध करायी गयी हैं, उनका निरीक्षण किया ।बाद में वे कुछ साधकों से मिले जो उनसे व्यक्तिगत मार्गदर्शन पाना चाहते थे। शाम को वे वेनेजुएला के राजदूत के निवास-परिसर में प्रवचन देने गये। वहां उन्हें सुनने के लिए लातीनी अमेरिका के कई देशों के राजदूत एकत्र थे। जेल में विपश्यना के बारे में कुछ और जानने के लिए वे बड़े उत्सुक थे। अंततः उन्होंने कहा कि वे तिहाड़ जेल के विपश्यना केद्र 'धम्मतिहाड़' को अवश्य देखना चाहेंगे।
दिवस 11, जनवरी 8, 2004
दोपहर बाद पू. गुरुजी परमपूज्य दलाईलामा के कार्यालय गये जहां उन्हें एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के विवादित मुद्दे से सम्बंधित लोगों से यह आग्रह करना था कि इस समस्या को दोस्ताना तरीके से सुलझाया जाय। पू. गुरुजी ने परमपूज्य दलाईलामा की एक अपील को भी पढ़ कर सुनाया। उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि उनकी इच्छा बीच-बचाव करने की नहीं है। उनकी इच्छा है कि भारत के सभी धर्म-सम्प्रदायों के लोगों में आपसी सद्भाव बना रहे।
कलह-विवाद से दूर रहने के लिए पू. गुरुजी बहुधा खुद्दक निकाय का यह उद्धरण देते हैं।
विवादं भयतो दिस्वा, अविवादञ्च खेमतो।
समग्गा सखिला होथ, एसा बुद्धानुसासनी ।।
(चरियापिटक ३.१२२, तस्सुद्दान)
विवाद में भय' तथा एक होकर रहने में 'क्षेम' देख कर सबको एक साथ मित्रतापूर्वक रहना चाहिए। यही बुद्धों की शिक्षा है।
उन्होंने स्वरचित यह दोहा भी कहा -
बढ़े वैर से वैर ही, बढ़े प्यार से प्यार।
वैर छोड़ कर लोग सब, करें परस्पर प्यार ।।
इसके बाद वे एक घंटे तक भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रो. श्री मुरली मनोहर जोशी से व्यक्तिगत रूप से मिले । पू. गुरुजी ने उन्हें बुद्ध की शिक्षा का सार ही नहीं बताया बल्कि भारत में इसके प्राचीन इतिहास का जिक्र करते हुए समझाया कि आज भी इसकी प्रासंगिकता और आवश्यकता उतनी ही है। उन्होंने माननीय मंत्री महोदय के सामने बुद्ध की शिक्षा और सम्राट अशोक के शासनकाल के आदर्शों को रखते हुए तथा हमारे यहां स्कूलों में पढ़ाई जा रही इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों की गलतियों के उद्धरण प्रस्तुत करते हुए समझाया कि ऐसी भ्रांत धारणा वाले वाक्यों को पाठ्य-पुस्तकों और संदर्भग्रंथों से यथाशीघ्र निकाला जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियों को सच्चाई की जानकारी हो सके और देश-हित सहित, पड़ोसियों के साथ भी हमारे सम्बंध सुधर सकें।
भारत की राजधानी में इस यात्रा के दौरान पू. गुरुजी ने बार-बार इस बात पर जोर दिया कि बुद्ध की शिक्षा किसी देश को कमजोर नहीं बनाती, बल्कि जहां लोग इस शिक्षा का अनुसरण करते हैं वह देश मजबूत बनता है। इस यात्रा में पुलिस के बड़े-बड़े अधिकारी भी पू. गुरुजी से मिले । सेना के एक लेफ्टिनेट जेनरल ने फोन पर पू. गुरुजी से मिलने का समय मांगा, क्योंकि उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सहित विपश्यना का एक दस-दिवसीय शिविर करके इसे बड़ा उपयोगी पाया था। उन दोनों को सायंकाल मिलने का समय दिया गया था।
दिवस 12, जनवरी 9, 2004
आज का प्रातःकाल व्यक्तिगत रूप से साधकों से मिलने में बीत गया। इन साधकों में एक थे पुलिस के डायरेक्टर जेनरल, जिन्होंने पू. गुरुजी से अपनी विपश्यना साधना के बारे में मार्गदर्शन मांगा। दूसरे थे विपश्यना के क्षेत्रीय आचार्य श्री टंडनजी, जिन्होंने पालि शिक्षा तथा बच्चों के शिविर सम्बंधी बहुत से मुद्दों पर पू. गुरुजी से मार्गदर्शन प्राप्त किया।
सायंकाल पू. गुरुजी उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवानी से मिले । मीटिंग एक घंटे तक चली । पू. गुरुजी ने बुद्ध की शिक्षा के बारे में, विपश्यना शिविरों के बारे में, और अशोक के परोपकारी साम्राज्य के बारे में, विस्तार से बातें की। उन्होंने समझाया कि बुद्ध की शिक्षा के प्रति फैली भ्रांत धारणाओं के कारण अपने समाज की बहुत बड़ी हानि हो रही है और बुद्धानुयाई पड़ोसी देशों के साथ हमारे सम्बंध भी बिगड़े हैं।
दिवस 13, जनवरी 10, 2004
बम्बई के लिए हवाई जहाज पकड़ने के लिए हवाई अड्डे जाने के पूर्व पू. गुरुजी पुनः कुछ साधकों से मिले । दिल्ली क्षेत्र के साधकों तथा धम्मसेवकों को पू. गुरुजी के वहां जाने से बड़ी प्रेरणा मिली। पू. गुरुजी तथा माताजी की उम्र तथा दिल्ली में इस समय कड़ाके की ठंढ के हिसाब से यह यात्रा एक साहसिक काम था । पू. गुरुजी के सहायकों ने मेजबान शिव, सीमा तथा सिद्धार्थ अग्रवाल को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया, जिनके आतिथ्य तथा सेवाभाव से पू. गुरुजी तथा माताजी का यह यात्रा सुखद एवं आरामदायक रही।
पू. गुरुजी इस बात को देख कर प्रसन्न थे कि यहां धर्म का काम बहुत ही सुचारु रूप से तथा सद्भाव के वातावरण में चल रहा है। इस यात्रा से यह भी संभव हुआ कि पू. गुरुजी ने बहुत से नेताओं को बुद्ध तथा उनकी शिक्षा के बारे में विस्तार से बताया।
इस धर्मचारिका के परिणामस्वरूप अनेकों का मंगल हो!
Feb 2004 हिंदी विपश्यना पत्रिका में प्रकाशित

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