पूज्य गुरुजी द्वारा सयाजी ऊ बा खिन को स्मरण एवं श्रद्धांजलि

 9 जनवरी, 1971 को जब सयाजी ऊ बा खिन दिवंगत हुए तब बोधगया के बरमी विहार में 17 से 27 जनवरी तक 92 साधको का शिविर सुचारुरूप से चल रहा था। 

अपराह्न 3-20 पर सयाजी का शरीर छूटा और शाम को तार से सूचना मिली कि सयाजी हमें छोड़ कर चले गये। शिविर आरंभ होने की सूचना तार से भेजी जा चुकी थी। 

इसलिए मां सयामा का संदेश आया, "शिविर चलते रहना चाहिए। सयाजी का आशीर्वाद सदैव आप के साथ है।" शिविर चलता रहा। इस सं बं ध में पूज्य गुरुजी का सर्कुलर पत्र अगले पृष्ठ पर यथावत है।


सयाजी के दिवं गत होने पर पू ज्य गु रुजी द्वारा साधकों को लिखा गया सर्कु र्लर पत्र । सत्यनारायण गोयन्का, प्रिय बं ध, ु पड़ाव – बोधगया, सप्रेम वन्दे। दि.: 22 - 01 - 1971 परसों शाम को रं गू न से तार द्वारा यह हृदय-विदारक सू चना मिली कि परम पूज्य गुरुदेव अब नहीं रह।े वे 19 ता० को दोपहर3:20 बजे दिवं गत हो गये। प्रकाश बु झ गया,परन्तु उस महान प्रकाश-पंु ज ने कितने लोगों के भीतर प्रज्ञा का दीपक जला दिया। वह प्रकाश तो कायम हैही औरहम सब उसके सच्चे उत्तराधिकारी के रूप मेंन केवल अपने भीतर वह लौ कायम रखेंगे, बल्कि अधिक से अधिक लोगों के अं तर में प्रज्ञा-प्रदीप प्रज्वलित करने मेंसहायक सिद्ध होंगे। अपने सभी शिष्यों के लिए उनका अं तिम सं देश यही था कि हम हमेशा धर्ममेंजीयें। जब तक हमारे भीतर धर्म-दीप जल रहा है, तब तक परम पूज्य गुरुदेव हमारे साथ ही हैं, क्योंकि वे तो प्रज्ञा-धर्म के साकार स्वरूप ही थे। उनकी पावन स्ति क मृ ो चिरजीवी बनाए रखने के लिए और उनके प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजलि समर्पित करने के लिए हम उनकी इस अं तिम इच्छा का अक्षरशः पालन करेंऔर अपने जीवन मेंधर्मजगाए रखें। हमारा अपना धर्म-दीप जलता रहगा े तो हम अनेक अन्य लोगों के जीवन मेंभी धर्म का प्रकाश प्रज्वलित कर सकें गे। इससे बढ़कर अपने परम पूज्य गुरुदेव की पावन स्ति क मृ ा और कोई सम्मान सत्कार हो ही नहीं सकता। उनकी भावनाओ कं ो ध्यान मेंरखते हु ए और मांसयामा के आदेश के अनु सार मैं यह शिविर चालूरख रहा हू,ं जो कि अपने पू र्व निश्चित कार्यक्रम के अनु सार 27 जनवरी को पूरा होगा। 28 जनवरी की शाम से मैं यहांस्वयं10 दिन के लिए अपनी साधना करूंगा। परम पूज्य गुरुदेव की असीम अनु कंपा का ऋण चकु ाने के लिए अधिक से अधिक लोगों को इस प्रज्ञा-धर्म प्रकाश से आलोकित कर सकने के लिए मझुे यथेष्ठ धर्म-बल की आवश्यकता है। आप सब भी इन दिनों अधिक से अधिक समय निकाल कर साधना करें। अपने भीतर प्रज्ञा-धर्मजाग्रत करेंऔर अपने आप को मं गल-मैत्री भावों से भरें, जिससे कि आप सब का धर्म-बल मझुे अधिक बलवान बनाए और हम सब मिलकर पूज्य गुरुदेव की धर्म-कामनाओ कं ो पूरा कर सकने में अधिक से अधिक सफलता प्राप्त कर सकें । अपनी 10 दिन की साधना के समापन पर रविवार ता. 7 फरवरी 1971 को पूज्य गुरुदेव की पावन स्ति मृ मेंबोधगया मेंएक बहतृ सं घ-दान का आयोजन कर रहा हू।ं इस दान के निमित्त दर- ूदर ू के भिक्षुओ कं ो आमं त्रित किया जायगा। इस श्रद्धाजन्य श्राद्ध-कर्म की पू र्णाहुति के बाद मैंशीघ्र बम्बई जा रहा हू,ं जहां कि कुछ दिनों विश्राम करने के बाद 1 मार्च से भावी शिविरों का कार्यक्रम आरं भ कर दिया जायगा। पूज्य गुरुदेव कीपावनस्ति मृ मेंहम अधिक से अधिक धर्मधारण करें, अधिक से अधिक धर्ममय जीवन बिताएं , सच्चे धर्म को व्यावहारिक जीवन का एक अं ग बनाना सीखें। इसी मेंहमारा मं गल है, कल्याण है, भला है, स्वस्ति है। भवतु सब्ब मङ्गलं , भवतु सब्ब मङ्गलं , भवतु सब्ब मङ्गलं !!

Source: 

Online Vipassana Patrika dated 28 January 2021

https://www.vridhamma.org/sites/default/files/newsletters/01-28-Jan.--Hindi%20Patrika%20%20%20-%2025-01-2021.pdf