चार दर्शनीय स्थल !
“भंते! पहले भिक्षु सभी दिशाओं से वर्षावास बाद भगवान के दर्शनार्थ आते थे। उन मनोभावनीय भिक्षुओं का दर्शन, सत्संग हमें मिलता था। किंतु भंते! भगवान के बाद हमें मनोभावनीय भिक्षुओं का दर्शन, सत्संग नहीं मिलेगा।"
“आनन्द! श्रद्धालु जनों के लिए ये चार स्थान दर्शनीय और वैराग्यप्रद हैं।
1. (लुम्बिनी) यहां तथागत उत्पन्न हुए,
2. (बोधगया) यहां तथागत ने अनुत्तर सम्यक-संबोधि प्राप्त की,
3. (सारनाथ) यहां तथागत ने धर्मचक्रप्रवर्तन किया, और
4. (कुसीनारा) यहां तथागत अनुपादिशेष परिनिर्वाण को प्राप्त हुए।
“आनन्द! श्रद्धालु जनों के लिए ये चार स्थान दर्शनीय और वैराग्यप्रद हैं।
“आनन्द! श्रद्धालु भिक्षु, भिक्षुणियां, उपासक, उपासिकाएं भविष्य में यहां आयेंगे - यहां तथागत उत्पन्न हुए, यहां सम्यक-संबोधि प्राप्त की, यहां धर्मचक्रप्रवर्तन किया, यहां परिनिर्वाण को प्राप्त हुए।
“ये हि केचि, आनन्द, चेतियचारिकं आहिण्डन्ता पसन्नचित्ता कालङ्करिस्सन्ति, सब्वे ते कायस्स भेदा परं मरणा सुगतिं सग्गं लोकं उपपज्जिस्सन्ती"ति।
- “आनन्द! जो कोई भी प्रसन्नचित्त होकर इन चैत्यों की चारिका करते हुए घूमेंगे, वे सब इस काया के छूटने (देहपात) पर सुगति को प्राप्त स्वर्ग लोक में उत्पन्न होंगे।
-दीघनिकाय (२.३.२०२), महापरिनिब्बानसुत्त
पुस्तक : भगवान बुद्ध के उपस्थापक "आनन्द"
विपश्यना विशोधन विन्यास