किसी के द्वारा कहे गए कल्याणकारी वचन को विनम्रतापूर्वक सुने, अच्छा उपदेश देने वाले का सम्मान करे, सुनी हुई अच्छी बात का ततपरतापूर्वक पालन करे तो अपना ही मंगल सधता है।
🌷सदुपदेश जहाँ कहीं से भी मिलें, जिस किसी से भी मिलें, उसे आदरपूर्वक ग्रहण करें।
एक व्यक्ति गर्व घमंड से भरा होता है तो किसी से कल्याणकारी वाणी सुनना भी हीन समझता है।चाहे वह चर्चा कितनी भी अच्छी क्यों न हो।
ऐसा व्यक्ति उद्दण्डता से भरा होने के कारण कल्याणकारी वाणी को विनम्र भाव से स्वीकार करने के स्थान पर अहंकार प्रकट करता हुआ कहता है--तुम कौन आये मुझे उपदेश देने वाले?
अथवा कहता है-नही चाहिये मुझे तुम्हारे उपदेश।यह जो कुछ कह रहे हो यह मै पहले से ही जानता हूँ।
अथवा कहता है--तुम मुझे क्या सिखाते हो?तुम्हारे में तो यह दोष है, यह दोष है।
और अपनी प्रशंसा करते हुए कहता है--मुझमे यह गुण है, यह गुण है।
गर्व घमंड से ऐसा कुछ नही भी कहे तो मुँह फुलाकर गुमसुम बैठा रहता है और उपदेश देने वाले को घृणा की दृष्टि से देखता है।
🌻दूसरी और कोई समझदार आदमी हो और उसे कोई उसकी भूल बता दे, तो बताने वाले का उपकार मानता है।
आदमी स्वयं अपनी भूल नही देख पाता, और जब उसकी भूल कोई अन्य व्यक्ति उसे दिखाता है और उसे सुधारने का उपदेश देता है तो वह कृतज्ञता से भर उठता है।
अपनी भूल सुधारकर अपना कल्याण साध लेता है।भूल बताने वाले व्यक्ति को ऐसे ही समझता है जैसे किसी ने गड़ा हुआ खजाना बता दिया हो। खजाना तो अपने पास है ही पर अपनी नासमझी से उसे ढ़क रखा है।किसी ने कृपा करके बता दिया और हमने अपनी नासमझी दूर कर ली और समझदारी के साथ अपना छिपा हुआ खजाना प्राप्त कर लिया।
अतः भूल बताने वाले को वह धन्यवाद ही देगा।इसी में उसका मंगल समाया हुआ है।
🌸इसलिये हमारे यहाँ के एक संत ने कहा--
निंदक नियरे राखिये,
आँगन कुटी छवाय।
बिन साबुन पानी बिना,
निर्मल करत सुभाय।।
हमारे स्वभाव में जो खोट है, उसे कोई बताये तो हम उसे अपना उपकारी ही मानेंगे।उसका शुक्रिया ही अदा करेंगे।जो अपनी गल्ती तुरंत स्वीकार कर लेता है और उसे सुधार लेता है वह अपना मंगल साध लेता है।
🍁अतः अपनी भूल बताने वाले के प्रति विनम्रभाव रखना गृहस्थ के लिये उत्तम मंगल ही है।
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