अष्टशील-ग्रहण




1. मैं प्राणी-हिंसा से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु /करती हु।


2. मैं चोरी से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु/ करती हु ।

3. मैं व्यभिचार से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु/ करती हु ।

4. मैं मिथ्या-वचन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु/ करती हु ।

5. मैं शराब, मदिरा,सिगरेट आदि नशे तथा प्रमाधकारी वस्तुओ के सेवन से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु / करती हु ।

6. मैं नाच, गाने , बजाने और अशोभनीय खेल-तमाशे देखने तथा माला , सुगंध , लेप आदि धारण करने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु/ करती हु ।

8. मैं (बहुत) ऊंची और बड़ी शय्या पर सोने से विरत रहने की शिक्षा ग्रहण करता हु/ करती हु ।

आचार्य - त्रिशरण सहित अष्ट-उपोसथ-शील धर्म को भली प्रकार से सुरक्षित रख कर अप्रमाद से इसका पालन करो ।

शिष्य - अच्छा , पूज्यवर !

सारे प्राणी सुखी हो

Premsagar Gavali

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