आशीर्वाद और प्रणाम


2600 वर्ष पूर्व के भारत में एक अनोखी आश्चर्यजनक घटना घटी। एक मां ने अपने पुत्र को वात्सल्यभाव से अभिभूत हो आशीर्वाद भी दिया और श्रद्धा से अभिनत हो उसकी वंदना भी की।


जिस ममतामयी महाप्रजावती गोतमी ने शिशु सिद्धार्थ गोतम को अपने स्तनों से दूध पिला कर पाला, उसे अपनी वृद्धावस्था में प्यारभरे आशीर्वाद देती है और उसी गोतमबुद्ध से अविद्या की खोल तोड़ कर नया जीवन पाने के कारण उसे अपना धर्मपिता कहकर चरणावनत हो सश्रद्ध वंदना भी करती है।

मेरा मानस भी इन्हीं भावों से विह्वल है। सत्यनारायण मेरे बाद मेरी ही जननी के कोख से जन्मा, मेरा प्यारा सहोदर अनुज है। उसके जीवन की यशस्वी उपलब्धियां देख कर मेरा हृदय गद्गद होकर उसे आशीर्वाद देता है कि वह स्वस्थ, सबल, शतायु होकर इसी प्रकार जनसेवा करता रहे।

साथ-साथ मेरा धर्मगुरु भी है। अतः उसके उपकारों को याद करके कृतज्ञताजन्य श्रद्धा से उसे नमन करता हुआ यह प्रबल मंगल कामना करता हूं कि जिस प्रकार इसके हाथों मेरा कल्याण हुआ, वैसे ही मेरे सभी स्वजनों, परिजनों का कल्याण हो! सारे विश्व के दुखियारों का कल्याण हो!

सब की स्वस्ति हो!
सब की मुक्ति हो!
सब का मंगल हो!

✍ भाव विभोर, बालकृष्ण


Premsagar Gavali

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