मैं व्यक्तिगत रूप से उनसे कभी नहीं मिल सका, लेकिन युद्ध के बाद जब बरमा वापस लौटा तब मेरे अनेक मित्र साथी ऐसे थे जिन्होंने आजाद हिंद सरकार अथवा आजाद हिंद फौज में उनके साथ काम किया था। उनकी जुबानी नेताजी के बारे में जो कुछ सुना उससे नेताजी के प्रति मन में जो श्रद्धा थी वह कई गुना बढ़ी । इन्हीं भावों को लिए हुए नेताजी की 53वीं जन्म जयंती पर रची गयी एक कविता के कुछ अंश-
तूने रणबिगुल बजाया तो, उठ बैठा ऐसा कौन नहीं!
तूने 'जयहिंद' पुकारा तो, पत्थर भी रहा न मौन कहीं॥
तेरे तो थे दो बोल और, सोने चांदी के ढेर लगे।
तेरी तो थी ललकार और, सब हिंदुस्तानी शेर जगे॥
घर-घर की रानी निकल पड़ी, झांसी की रानी बन-बन कर।
हर बालक तेरी बालक-सेना में, भरती हो हँस हँस कर ॥
हर नौजवान तेरी सेना के लिए स्वयं तैयार हुआ।
सदियों से सोई रग-रग में, फिर नया खून संचार हुआ॥
तूने मांगा था खून यहीं, आजादी देने के बदले ।
फिर देखा कितने निकल पड़े थे, जान हथेली पर ले ले॥
कौन कहेगा हार गयी थी, तेरी सेना कोहिमा पर?
हार नहीं थी, जीत बनी वह, सौ-सौ जीतों से भी बढ़ कर॥
तूने चिनगारी सुलगायी, वह आग बनी थी भारत भर में।
तेरे वीरों की गाथा सुन, जोशीली लहर उठी घर घर में॥
उन लहरों ने हो प्रलयंकर, कैसा तूफान जगाया था।
ब्रिटिश हुकूमत को, सातों सागर के पार बहाया था॥
तुझसे प्रेरित हो जाग उठा, सदियों से सोया तेरा भारत ।
और गुलामी की जंजीरों से, मुक्त हुआ यह तेरा भारत ॥
कैसे भूल सकेगा भारत, तेरी बेमिसाल कुर्बानी।
धरती के जर्रे-जर्रे पर, गूंजे तेरी अमर कहानी ॥
सत्य नारायण गोयनका
पुस्तक: आत्म-कथन (भाग-1)
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥