- : Eligibility For Vipassana Courses :-
विपश्यना के 1 से लेकर 60 दिन तक लगने वाले सभी शिविरों के लिए योग्यताएं :- - -
1) एक / दो / तीन दिवसीय लघु शिविर तथा स्वयं शिविर - (1 / 2 / 3 Day Short Courses & Self Course) :-
केवल पुराने साधकों के लिये,
* जिन्होने किशोरों का शिविर
(Teenagers' Course) किया हो l
* जिन्होंने सामान्य दस दिन का एक या अधिक
विपश्यना शिविर किये हो।
2) सतिपट्ठान शिविर [ Satipaṭṭhāna Course (STP) ] :-
तीन सामान्य दस दिवसीय शिविर किये साधकों के लिये, जो कि विगत एक वर्ष से नियमित और गंभीरतापूर्वक दैनिक अभ्यास करते हो।
(लघु एवं सतिपट्ठान शिविर का समापन अंतिम तिथि की सायं होता है।)
3) किशोरों के शिविर - (Teenagers' Course) :-
15 वर्ष पूर्ण से 19 वर्ष पूर्ण
(कृपया किशोरों के शिविर के लिए
बनाय हुये नये आवेदन-पत्र का उपयोग करें)
🌷 दीर्घ शिविर :- (Long Courses) :-
👉 सूचना : - दो दीर्घ शिविरों के बीच 6 माह का अंतराल आवश्यक है।
4) 20 दिवसीय शिविर और विशेष 10 दिवसीय शिविर - (20 Day & Special 10 Day Course) :-
पाँच सामान्य दस दिवसीय शिविर, एक सतिपट्ठान शिविर किये और एक दस-दिवसीय शिविर में सेवा दिये हुए साधकों के लिये, जो विगत दो वर्षो से नियमित दैनिक अभ्यास करते हों तथा विधि के प्रति अनन्यभाव से पूर्णतया समर्पित हो।
5) 30 दिवसीय शिविर - (30 Day Course) :-
जिन्होंने 20 दिवसीय शिविर किया हो तथा
किसी एक शिविर में धर्मसेवा दी हो।
6) 45 दिवसीय शिविर - (45 Day Course) :-
जिन्होंने दो 30 दिवसीय शिविर किये हो एवं धम्मसेवा दिये हो।
*~ जहां 30 व 45 दिन के शिविर साथ होगे, वहां 10 दिन की आनापान होगी, और
*~ जहां केवल 45 दिन का शिविर होगा, वहां 15 दिन की आनापान होगी।
7) 60 दिवसीय शिविर - (60 Day Course) :-
केवल सहायक आचर्यों के लिए जिन्होंने
दो 45 दिवसीय शिविर किये हुए हैं।
8) 14 दिवसीय कृतज्ञता-शिविर - (Gratitude Course) :-
[ पुराना आचार्य स्वयं शिविर - Previous Teachers' Self Course
(TSC) ] :- निश्चित तिथियां : हर वर्ष 2 से 17 फरवरी।
शिविर की योग्यता –
इस ‘शिविर’ में सम्मिलित होने के लिए केवल एक सतिपट्ठान शिविर,धर्म के प्रचार-प्रसार में योगदान तथा स्थानीय आचार्य की संस्तुति आवश्यक होगी।
यह कृतज्ञता-शिविर “आचार्य स्वयं शिविर” का ही रूप है। शिविर का फॉरमॅट बिल्कुल वही रहेगा। पूज्य गुरुजी और माताजी अब नही रहे तो उनके प्रति तथा पूरी आचार्य परंपरा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए इसी समय अधिक से अधिक लोग एक साथ तपेंगे, एक साथ आनापान, विपश्यना और मैत्री होगी तो सभी उनकी धर्मतरंगो के साथ समरस होकर परम सुख-लाभ ले पायेंगे - समग्गानं तपो सुखो।
प्रसन्नता की बात यह है कि फरवरी की इन्हीं तिथियों के बीच हिंदी तिथि के अनुसार पूज्य गुरुजी एवं माताजी की जन्म-तिथियां (जयंतियां) भी आती हैं।
स्थानीय साधकों को धर्मलाभ पहुँचाने के इच्छुक अन्य केंद्र भी चाहें तो इस गंभीर कृतज्ञता-शिविर को अपने यहां के कार्यक्रमों में संमिलित कर सकते हैं।
!! सबका मंगल हो !!