राजकुमार सीलवा - सत्य नारायण गोयन्का


🌹राजकुमार सीलवा🌹


बिम्बिसार का एक और पुत्र था सीलवा। बिम्बिसार के कई ''रानियां थीं कुछ वरिष्ठ, अनेक कनिष्ठ। कहा नहीं जा सकता कि वह कौन सी रानी का पुत्र था। राज्य -सत्ता- लोलुप अजातशत्रु ने उसे मरवाने के अनेक प्रयल किए। इससे अनुमान किया जा सकता है कि वह अवश्य एक महत्वपूर्ण राजकुमार रहा होगा। राजगद्दी पर उसका धिकार औरों की अपेक्षा अधिक दृढ़ रहा होगा। तभी अजातशत्रु उसे अपना प्रबल प्रतिद्वन्दी मानकर मरवाने के अनेक षडयन्त्र करते रहा। परन्तु अपनी पुण्यपारमी के कारण सीलवा मृत्यु से बचता रहा।
एक बार किसी षड्यंत्र द्वारा उसे एक उन्मत्त चंड हाथी की पीठ पर बैठा दिया गया। इस उद्देश्य से कि हाथी क्रुद्ध होकर उसे अपनी पीठ से नीचे गिरा दे और कुचलकर मार दे। सीलवा भगवान के प्रति अत्यंत श्रद्धालु था। बार-बार उनसे धर्म सीखने के लिए वेणुवन जाया करता था । भगवान जानते थे कि यह व्यक्ति इसी जीवन में अहंत बनने की पूर्ण क्षमता रखता है। उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि उसे छलपूर्वक प्रमत्त हाथी की पीठ पर बैठा दिया गया है, तो महामोग्गलायन को उसके प्राण बचाने के लिए भेजा। महामोग्गलायन ने अपने मैत्रीबल से उन्मत्त हाथी को शांत किया और उसे राजकुमार सीलवा सहित भगवान के पास ले आया। शांत चित्त हाथी भगवान के सामने घुटने टेक कर बैठ गया और सीलवा हाथी से उतरकर भगवान के चरणों में गिर पड़ा।
सीलवा सचमुच अत्यंत सीलवान था। भगवान ने उसे यथोचित उपदेश देकर विपश्यना विद्या सिखाई, जिसका अभ्यास कर चंद दिनों में ही वह स्रोतापन्न हो गया। तदनन्तर अत्यंत श्रद्धावान होकर वह प्रव्रजित हुआ और मागधी राज्य-षड्यन्त्रों से दूर कोशल देश के एक अरण्य में एकांत साधना करने के लिए चला गया। समय पाकर उसे अहंत अवस्था प्राप्त हुई।
जब अजातशत्रु ने सुना कि सीलवा अमुक अरण्य में प्रव्रजित होकर रहता है तो उसे लगा कि मृत्युघात से बचने के लिए वह स्वांग रच रहा है। अनुकूल अवसर आने पर मगध लौटकर राजगद्दी पर अपने अधिकार का दावा अवश्य करेगा। अतः इस कांटे को अभी दूर कर देना चाहिए। सीलवा पराए देश में था। वहां अपने सौनिक भेजकर उसे बंदी नहीं बनाया जा सकता था। अत: कुछ एक पेशेवर हत्यारों को उसे मारने के लिए भेजा। जब ये लोग इस बुरे उद्देश्य से उसके पास गए तो अहंत सीलवा ने अत्यंत मैत्री चित्त से उन्हें समीप बैठाया और धर्मदेशना दी। मैत्री की तरंगों से प्रभावित होकर वे धर्म सुनने लगे। शीलवान सीलवा ने शील की महिमा के गीत गाए जो कि सौभाग्य से हमारे लिए आज भी सुरक्षित हैं। यह धर्मगीत पच्चीस सौ वर्षों से धर्म-पथिकों को, मुक्ति-मार्गियों को असीम प्रेरणा देते रहे हैं। आज भी वे उतने ही । प्रेरणादायक हैं, उतने ही तरोताजा हैं। आओ, इस सनातन धर्मवाणी से प्रेरणा पाएं, इससे ताजगी हासिल करें!
सीलवा द्वारा गाए हुए शील की महिमा के बोल इस प्रकार है:
1 - यहां इस लोक में मुक्ति के मार्ग पर चलनेवालों को चारित और वारित शीलों में सुरक्षित होना चाहिए । सेवित शील से सभी मानवी, दिव्य और निर्वाणिक सम्पत्तियां उपलब्ध होती हैं।
2 - जिसे इस लोक में यश, प्रशंसा और धनलाभ तथा परलोक में आनंदलाभ चाहिए, वह समझदार मेधावी व्यक्ति अपने शील की रक्षा करे।
3 - कायिक ,वाचिक दुष्कर्मों से विरत रहनेवाला शीलवान व्यक्ति धर्माचरण के कारण अनेकों को मित्र बना लेता है। इसके विपरीत कायिक वाचिक दुष्कर्मों में रत दुश्शील व्यक्ति पापाचरण के कारण अपने मित्रों से विलग हो जाता है, मित्रता ध्वंस कर लेता है।
4 - दुश्शील व्यक्ति निंदा और अपयश प्राप्त करता है परन्तु शीलवान सदा कीर्ति और प्रशंसा प्राप्त करता है।
5 - शील का पारायण सभी कुशलताओं का उद्गम है, उनका प्रतिष्ठापित आधार है, कल्याण का जन्मदाता है और सभी धर्मों में प्रमुख-प्रधान है। इसलिए शील की शुद्धता संपादित करें।
6- शील दुराचरण के सामने लगी हुई सीमा-रेखा है। शील मन का संवर है। शील चित्त की अतीव प्रसन्नता है। शील सभी बुद्धों का वह तीर्थ है, जहां सारे दुष्कर्मों के मैल धो दिए जाते हैं, जहां से आगे बढ़कर निर्वाण के शांति सागर में डुबकी लगायी जाती है। इसलिए शील की शुद्धता का संपादन करें।
7- शील मार की सेना को परास्त करने के लिए अप्रतिम बल है। शील विकार-समूहों को ध्वस्त करने के लिए उत्तम अस्त्र है। शील धर्मवन्तों का आभरण-अलंकरण है । शील अपनी सुरक्षा के लिए अद्भुत कवच है।
8 - विकारों में डूबने से बचने के लिए और संसार को पार कर सकने के लिए शील एक महान सेतु है, पुल है। शील ऐसी सर्वजन मनोहारिणी उत्तम सुगन्ध है, श्रेष्ठ लेप है, जिसकी सुरभि सभी दिशाओं में प्रवाहमान होती है।
9 - भव-कांतार को पार करनेवाले धर्म-संपन्न व्यक्ति के लिए शील श्रेष्ठ संबल है, सहारा है । शील उत्तम पाथेय है। शील ऐसा वाहन है जिस पर सवार हो, दुर्गम कांतार से बाहर निकलने के लिए सभी दिशाओं में जाया जा सकता है।
10 - शील में असमाहित पापाचारी यहीं इस लोक में निंदा, अपयश का भागी होता है और परलोक में अपायगति प्राप्त कर दुःखी होता है। ऐसा मूढ़ व्यक्ति सर्वत्र दुर्मन दुःखी रहता है।
11 - शील में समाहित धर्मचारी यहीं इस लोक में यश-कीर्तिलाभी होता है और परलोक में भी स्वर्गीय सुख-भोगी होता है। ऐसा सुधी व्यक्ति सर्वत्र सुमन-सुखलाभी होता है।
12 - यहां इस विमुक्ति मार्ग पर शील अग्र है, प्रमुख है; प्रज्ञा उत्तम है, श्रेष्ठ है। शील और प्रज्ञा के संयोग से मनुष्यों और देवताओं को सदा विजय की प्राप्ति होती है।
शील महात्म्य की कैसी सांगोपांग अभिव्यंजना!
सचमुच शील आधार है प्रज्ञा का और प्रज्ञा आधार है विमुक्ति की। बिना शील के प्रज्ञा जाग्रत नहीं हो सकती। न ही सीलेन विना पञ्जा सम्भवति।और प्रज्ञा के बिना के वल शील मुक्तिदायी नहीं हो सकता। प्रज्ञाविहीन शीलवान व्यक्ति किच्चकर (कृत्यकर) होता है, किच्चकत (कतकृत्य)नहीं । शील और प्रज्ञा दोनों एक दूसरे के उपकारक हैं, सहायक हैं, बल-प्रदायक हैं। इसीलिए कहा गया है कि जैसे एक हाथ से रगड़कर दूसरे हाथ को धोते हैं, जैसे एक पांव से रगड़कर दूसरे पांव को धोते हैं, वैसे शील को प्रज्ञा से रगड़कर धोएं और प्रज्ञा को शील से रगड़कर धोएं। विमुक्ति अवश्यंभावी है।
कोई सामान्य वक्ता भी शील और प्रज्ञा की ऐसी व्याख्या कर सकता है, पर उसका इतना असर नहीं होता। यहां शील की महिमा उस शीलवान ने गायी है, जो कि शील के आधार पर प्रज्ञा जगाकर अहँत बन चुका है। इसीलिए उसकी वाणी ऐसी करुणासिक्त और ओजपूर्ण है कि जिसे सुनकर विपुल पारिश्रमिक पाने के लोभ में वध करने आए हुए हत्यारे भी बदल गए, उनका मानस बदल गया। उनके मन में धर्म-संवेग जागा, निर्वेद जागा । सब ने संत सीलवा के चरणों में सिर झुका दिया और गलत आजीविका त्याग कर स्वस्ति-मुक्ति के सही धर्म-मार्ग के अनगामी हो गए।
धन्य है शील की महिमा! आओ साधकों,हम भी अपना शील पुष्ट करें और प्रज्ञा-पथ पर पग-पग बढ़ते हुए अपना मंगल साध लें!
मंगलमित्र,
सत्य नारायण गोयन्का
जूलाई 1991 हिंदी पत्रिका में प्रकाशित