धर्म सत्य है, ऋत है, विश्वविधान है, कुदरत का कानून है।
सजीव व निर्जीव, सभी धर्म पर आधारित हैं। अणु अणु को,
पिंड पिंड को, ब्रह्मांड ब्रह्मांड को धर्म ही धारण किए हुए है।
अणु, पिंड, ब्रह ब्रह्मांड धर्म को ही धारण किए हुए हैं।
सजीव व निर्जीव, सभी धर्म पर आधारित हैं। अणु अणु को,
पिंड पिंड को, ब्रह्मांड ब्रह्मांड को धर्म ही धारण किए हुए है।
अणु, पिंड, ब्रह ब्रह्मांड धर्म को ही धारण किए हुए हैं।
साधको! जीवन में जब-जब सं कट आए, आंधी आए,
तूफान आए, बेसहारापन आए, किंकर्तव्य-विमूढ़ता आए
तब-तब धर्म की शरण ग्रहण करना सीखें। बड़ी राहत
मिलती है धर्म की शरण में।
जब कभी पैशाचिक प्रभं जन महामारी का रूप धारण
करके निर्मम अट्टहास करता हो, असीम जल-प्लावन
तूफान आए, बेसहारापन आए, किंकर्तव्य-विमूढ़ता आए
तब-तब धर्म की शरण ग्रहण करना सीखें। बड़ी राहत
मिलती है धर्म की शरण में।
जब कभी पैशाचिक प्रभं जन महामारी का रूप धारण
करके निर्मम अट्टहास करता हो, असीम जल-प्लावन
भयानक रौद्र रूप धारण कर लेता हो, शांत जलधि में
महाज्वार उमड़ पड़ता हो, चारो ओर उत्ताल तरंगें विषधर
नाग की तरह फुं कारने लगती हो, विनाशकारी जल-भँवर
सब को अपने भीतर लीलने के लिए व्यग्र हो उठता हो, तब
आदमी के सभी सहायक कन्नी काट जाते हैं, सभी सं बं धी
बगले झांकने लगते हैं, सभी सहयोगी तोते की तरह आंख
बदल लेते हैं, जन्म-जन्म के साथी मुँह मोड़ लेते हैं, बं धु-
बांधव अपने-अपने प्राण बचाने में लग जाते हैं, सभी डूबते
हुए किसी न किसी तिनके का सहारा खोजने में लगे रहते हैं।
सारा अपनापन हवा हो जाता है। स्वजन, परिजन पराए बन
जाते हैं।
महाज्वार उमड़ पड़ता हो, चारो ओर उत्ताल तरंगें विषधर
नाग की तरह फुं कारने लगती हो, विनाशकारी जल-भँवर
सब को अपने भीतर लीलने के लिए व्यग्र हो उठता हो, तब
आदमी के सभी सहायक कन्नी काट जाते हैं, सभी सं बं धी
बगले झांकने लगते हैं, सभी सहयोगी तोते की तरह आंख
बदल लेते हैं, जन्म-जन्म के साथी मुँह मोड़ लेते हैं, बं धु-
बांधव अपने-अपने प्राण बचाने में लग जाते हैं, सभी डूबते
हुए किसी न किसी तिनके का सहारा खोजने में लगे रहते हैं।
सारा अपनापन हवा हो जाता है। स्वजन, परिजन पराए बन
जाते हैं।
ऐसे समय, साधको! एकमात्र धर्म ही सहायक होता है।
धर्म ही बेड़े का काम करता है, द्वीप का काम करता है। धर्म
की शरण ही सच्ची शरण होती है। जब दुर्बल व्यक्ति थका
मांदा होने के कारण अपने आप को बचाने के लिए हाथपावं भी नही चला पाता,
धर्म ही बेड़े का काम करता है, द्वीप का काम करता है। धर्म
की शरण ही सच्ची शरण होती है। जब दुर्बल व्यक्ति थका
मांदा होने के कारण अपने आप को बचाने के लिए हाथपावं भी नही चला पाता,
कही किसी ओर किसी तिनके का सहारा भी नही पाता तब अपने आपको धर्म के बहाव में
बहने के लिए छोड़ देता है। और जहां समर्पित भाव से धर्म
के बहाव में बहने लगता है, वही धं र्म कवच की तरह संरक्षक
बन जाता है। धर्म कभी धोखा नही देता, कभी विश्वासघात
नही करता, कभी नीचे की ओर नही धके धकेलता।
बहने के लिए छोड़ देता है। और जहां समर्पित भाव से धर्म
के बहाव में बहने लगता है, वही धं र्म कवच की तरह संरक्षक
बन जाता है। धर्म कभी धोखा नही देता, कभी विश्वासघात
नही करता, कभी नीचे की ओर नही धके धकेलता।
साधको!
जरा धर्म के प्रति समर्पण करना तो सीखें!
साधको! मैं सुनी-सुनाई या पढ़ी-पढ़ाई बात नही कहता।
अपने अनुभव की बात कहता हूं। सचमुच! बड़ी राहत
मिलती है, धर्म के प्रति समर्पित होने में, धर्म की शरण जाने
में।
पर अमूर्त धर्म की शरण जाना कठिन काम है। हम सदा
से किसी न किसी मूर्तव्यक्ति की ही शरण जाने के आदी
रहे हैं न! और व्यक्ति, जो भी हो, बेचारा स्वयं ससीम, स्वयं
अशांत, स्वयं असुरक्षित, स्वयं अशरण है! दूसरे को भला
क्या शरण देगा? किसी शरणार्थी को समीप आया देख,
स्वयं अपनी गठरी-मुठरी सँभालने लगेगा। अपनी सुरक्षा की
चिंता करने लगेगा। दुर्बल दुर्बल की क्या सहायता करेगा?
जरा धर्म के प्रति समर्पण करना तो सीखें!
साधको! मैं सुनी-सुनाई या पढ़ी-पढ़ाई बात नही कहता।
अपने अनुभव की बात कहता हूं। सचमुच! बड़ी राहत
मिलती है, धर्म के प्रति समर्पित होने में, धर्म की शरण जाने
में।
पर अमूर्त धर्म की शरण जाना कठिन काम है। हम सदा
से किसी न किसी मूर्तव्यक्ति की ही शरण जाने के आदी
रहे हैं न! और व्यक्ति, जो भी हो, बेचारा स्वयं ससीम, स्वयं
अशांत, स्वयं असुरक्षित, स्वयं अशरण है! दूसरे को भला
क्या शरण देगा? किसी शरणार्थी को समीप आया देख,
स्वयं अपनी गठरी-मुठरी सँभालने लगेगा। अपनी सुरक्षा की
चिंता करने लगेगा। दुर्बल दुर्बल की क्या सहायता करेगा?
अनाथ अनाथ को क्या सहयोग देगा? अंधा अंधे को क्या
रास्ता दिखायेगा?
अत: सबल और सक्षम अमूर्त धर्म की ही सहायता लें।
धर्म की ही शरण ग्रहण करें! कु छ देर के लिए ही सही,
जरा नि:स्पृह होकर धर्म के बहाव में जीवन को बहने देने
के लिए खुला छोड़कर तो देखें। बड़ा आत्मबल प्राप्त होगा,
बड़ा आत्मविश्वास जागेगा। अपने आपको बहाव के सहारे
रास्ता दिखायेगा?
अत: सबल और सक्षम अमूर्त धर्म की ही सहायता लें।
धर्म की ही शरण ग्रहण करें! कु छ देर के लिए ही सही,
जरा नि:स्पृह होकर धर्म के बहाव में जीवन को बहने देने
के लिए खुला छोड़कर तो देखें। बड़ा आत्मबल प्राप्त होगा,
बड़ा आत्मविश्वास जागेगा। अपने आपको बहाव के सहारे
छोड़कर नए सं स्कार बनाने बं द करना है। इसी से पुरानों
की निर्जरा का रास्ता खुलता है और पूर्व कर्मों के फलस्वरूप
आए तूफान का बल अपने आप क्षीण होने लगता है। यही
धर्म की शरण जाना है।
की निर्जरा का रास्ता खुलता है और पूर्व कर्मों के फलस्वरूप
आए तूफान का बल अपने आप क्षीण होने लगता है। यही
धर्म की शरण जाना है।
देखें, सं कट के समय इसे आजमाकर देखें। भविष्य
आनंद मं गल से भर उठेगा। दिशाएं हर्ष-उमंगो से नाचने
लगेंगी। देखते-देखते सारी निराशा काफू र हो जायगी। सारा
वातावरण कल्याण की तरंगो से तरंगित हो उठेगा।
आनंद मं गल से भर उठेगा। दिशाएं हर्ष-उमंगो से नाचने
लगेंगी। देखते-देखते सारी निराशा काफू र हो जायगी। सारा
वातावरण कल्याण की तरंगो से तरंगित हो उठेगा।
इसीलिए साधको, आओ! धर्म की शरण ग्रहण करें!
सचमुच बड़ी मं गलदायिनी है धर्म की शरण!
सचमुच बड़ी मं गलदायिनी है धर्म की शरण!
मंगल मित्र,
सत्यनारायण गोयन्का.
सत्यनारायण गोयन्का.