मौन सुत



“ भिक्षुओ `मौन` तीन प्रकार का होता है I कौन से तीन प्रकार का ? काया का मौन, वाणी का मौन, मन का मौन I

“ भिक्षुओ, काया का मौन कैसा होता है ?
“ भिक्षुओ, भिक्षु प्राणी-हिंसा से विरत होता है, चोरी से विरत होता है, कामभोग संबंधी मिथ्याचार से विरत होता है I भिक्षुओ, यह काया का मौन कहलाता है I

“ और भिक्षुओ, वाणी का मौन कैसा होता है ?
“यहाँ भिक्षुओ, भिक्षु झूठ बोलने से विरत होता है, चुगली खाने से विरत होता है, कठोर बोलने से विरत होता है, व्यर्थ बोलने से विरत होता है I भिक्षुओ, यह वाणी का मौन कहलाता है I

“ और भिक्षुओ, मन का मौन कैसा होता है ?
“ यहाँ भिक्षुओ, भिक्षु आश्रवो का क्षय कर, अनाश्रव चित-विमुक्ति, प्रज्ञा-विमुक्ति को इसी जीवन में अपने-आप जानकार, साक्षात कर, प्राप्तकर विहार करता है I भिक्षुओ, यह मन का मौन कहलाता है I

“ भिक्षुओ, ये तीन मौन है I

[ जिसकी काया मौन है, जिसकी वाणी मौन है, जिसका चित मौन है –ऐसे मौन-युक्त, सर्वत्यागी अनाश्रव जन को मुनि कहते है I 

Premsagar Gavali

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