
तथागत अरहंत सम्यक सम्बुद्ध को दान देता है, यह पहली प्रति-पुदाग्लिक दक्षिणा है l
प्रत्येक बुद्ध को दान देता है, यह दूसरी०....
तथागत के श्रावक अर्हन्त को दान देता है, यह तीसरी ०....
अर्हन्त फल के साक्षात् में लगे हुये को दान देता है, यह चौथी०....
अनागामी को दान देता है, यह पाँचवी०....
अनागामी-फल के साक्षात् में लगे हुये को दान देता है, यह छटी०....
सकृदागामी को दान देता है, यह सातवी०....
सकृदागामी-फल के साक्षात् में लगे हुये को दान देता है, यह आठवी०....
श्रोतापन्न को दान देता है, यह नौवी०....
श्रोतापन्न-फल के साक्षात् में लगे हुये को दान देता है, यह दसवी०....
संघ के बाहर वीतरागी को दान देता है, यह ग्यारवी०....
शीलवान पृथकजन (श्रोताप्पति को न प्राप्त ) को दान देता है, यह बारहवी०....
दुश्शील पृथकजन (श्रोताप्पति को न प्राप्त ) को दान देता है, यह तेरहवी०....
तिर्यग्योनी (पशु पक्षी आदि ) को दान देता है, यह चौदहवी०....
आनंद ! तिर्यग्योनगत (पशु पक्षी आदि) को दान देने में सौ गुना फल की आशा रखनी चाहिय l
दुश्शील पृथकजन में हजार गुनी०...
शीलवान पृथकजन में सौ हजार गुनी०...
संघ के बाहर वीतरागी में सौ हजार करोड़ गुनी०...
श्रोतापन्न-फल के साक्षात् में लगे हुये में असंख्य (अनगिनत), अप्रमेय (प्रमाण रहित) फल की आशा रखनी चाहिय l
फिर श्रोतापन्न की बात क्या कहनी है ?
फिर सकृदागामी की बात क्या कहनी है ?
फिर अनागामी की बात क्या कहनी है ?
फिर अर्हन्त की बात क्या कहनी है ?
फिर प्रत्येक बुद्ध की बात क्या कहनी है ?
फिर तथागत अरहंत सम्यक सम्बुद्ध की बात क्या कहनी है ?
आनंद ! यह सात संघ-गत (संघ में को ) दक्षिणाये है l कौन सी सात ?
बुद्ध प्रमुख दोनों संघो को दान देता है, यह पहली संघ-गत दक्षिणा है l
तथागत के परिनिर्वाण पर दोनों संघो को दान देता है, यह दूसरी०...
भिक्षु संघ को दान देता है, यह तीसरी०...
भिक्षुणी संघ को दान देता है, यह चौथी०...
मुझे संघ इतने भिक्षु भिक्षुणी उद्देश करे (दान देने के लिय दे ) ऐसे दान देता है, यह पाँचवी०...
मुझे संघ इतने भिक्षु उद्देश करे, ऐसे दान देता है, यह छटी०...
मुझे संघ इतने भिक्षुणी उद्देश करे, ऐसे दान देता है, यह सातवी०...
आनंद ! भविष्यकाल में भिक्षु-नाम-धारी (गोत्रभू), काषाय-मात्र-धारी (काषाय-कंठ), दुश्शील, पाप-धर्मा भिक्षु होंगे l लोग संघ के नाम पर उन दुश्शिलो को दान देंगे l उस समय भी आनंद ! मैं संघ-विषयक दक्षिणा को असंख्य (अनगिनत), अपरिमित (फलवाली) कहता हूँ l