गुरुजी और माताजी को हरियाली बहुत पसंद थी। 1976 में हैदराबाद की हरियाली देख कर लौटे तो धम्मगिरि में बहुत सारे पेड़-पौधे लगवाये। बहुत से स्वतः उगने वाले पेड़ों के बीज मँगवाए और जमीन में डलवाये ताकि यहां भी हरियाली सर्वत्र फैल जाय।
वन-विभाग के लोगों को बुलवा कर उनसे भी सलाह लेते और वैसा करने के लिए आवश्यक निर्देश देते। कुछ समय बाद पूरा क्षेत्र घने पेड़-पौधों से लहलहाने लगा, जबकि यहां कुछ आम के बड़े पेड़ों के अतिरिक्त बिल्कुल उजाड़ था। कुछ ऐसे पौधे जो वर्ष भर बिना पानी दिये भी हरे-भरे रहते हों, उन्हें प्राथमिकता दी। हरियाली के साथ-साथ आवश्यक निर्माणकार्य भी चलते रहे।
कोई व्यक्ति फूल लाकर गुरुजी को देता तो यही कहते- “ये बेचारे फूल तो डाली पर ही अच्छे लगते हैं। इन्हें मेरे लिए तोड़कर गलत काम किया। भविष्य में ऐसा कभी न करना। डाली पर लगा रहता तो कुछ दिन और जीवित रहता, जबकि यहां तो अभी मर जायगा”।
ऐसे ही जब कभी वे दोनों घूमने के लिए बाहर निकलते तो सबसे पहले निवास के बाहर खिले फूल व पेड़-पौधों को हाथ से छूकर मैत्री देते और बहुत से पेड़ों पर हाथ रखकर मैत्री देते हुए, उन पर रहने वाले दृश्य-अदृश्य सभी प्राणियों को मैत्री देते। वे कहते थे- अनेक अदृश्य प्राणी इन पेड़-पौधों पर वास करते हैं इसलिए उन्हें काटना या नुकसान पहुँचाना बहुत बुरा काम है। बहुत आवश्यक होने पर ही किसी पेड़ को वहां से हटाने की स्वीकृति देते।
काटने से पहले वे हर पेड़ के पास खड़े होकर मैत्री देते। उस पर रहने वाले अदृश्य प्राणियों से निवेदन करते कि आप लोग यहां से चले जायँ। इसे काटना जरूरी हो गया है। इस प्रकार नम्रतापूर्वक मैत्री देकर ही किसी पेड़ पर कुल्हाड़ा लगाने की अनुमति देते थे। उनके ये शब्द बहुत धीमे स्वर में होते हुए भी हम पीछे खड़े सुन सकते थे। धम्महॉल और पगोडा पर
तथा उसके आसपास न जाने कितने असंख्य प्राणियों का वास होता है। अतः वे सदैव पगोडा पर रात भर रोशनी रखने की बात करते थे।
पूज्य माताजी का बागवानी से विशेष लगाव का जिक्र करना भी आवश्यक लगता है। वे अपने घर के बगीचों को स्वयं सींचती, अपने हाथों से गमलों में खाद व मिट्टी भर कर पौधों को लगातीं । जुहू के बँगले में माली को साथ लेकर पौधों की देखभाल करती थीं। बंगले की सीमा-दीवाल के ऊपर पक्की नाली जैसे गमले बनवा कर, उसमें खाद-मिट्टी डलवा कर फूल एवं हरियाली वाले पौधे, लताएं आदि लगवायीं जो पड़ोसियों तक के मन मोह लेती।तत्पश्चात जब वे 13वें एवं 14वें तल पर बने फ्लैटों में आयीं तो वहां के खुले हरेसों पर भी उन्होंने फूल-पौधों का अंबार लगा दिया।
विपश्यना पत्रिका संग्रह 09, 2016