अष्टशतसूत्र

एक सौ आठ वेदनाएँ




"भिक्षुओ ! अब मैं तुम्हें एक सौ आठ धर्मों का उपदेश करूँगा। उसे मन लगाकर सुनो।
भिक्षुओ ! ये एक सौ आठ धर्म कौन से हैं ? भिक्षुओ ! मैने प्रसङ्ग आने पर दो वेदनाओं का भी उपदेश किया है, तीन वेदनाओं का भी उपदेश किया है, पाँच का भी... छह का भी... अट्ठारह का भी... छत्तीस का भी... एक सौ आठ वेदनाओं का भी, प्रसङ्ग आने पर उपदेश किया है।

"भिक्षुओ ! उनमें दो वेदनाएँ कौन सी होती हैं ?
१. कायिक एवं २. चैतसिक - ये दो वेदनाएँ कहलाती हैं।

"भिक्षुओ ! उन में तीन वेदनाएँ कौन सी होती हैं ?
१. सुखा वेदना, २. दुःखा वेदना, एवं ३.अदु:खा-असुखा वेदना। ये तीन वेदनाएँ कहलाती हैं।

"भिक्षुओ ! पाँच वेदनाएँ कौन सी होती हैं ?
१. सुखेन्द्रिय, २. दुःखेन्द्रिय, ३. सौमनस्येन्द्रिय,
४. दौर्मनस्येन्द्रिय एवं ५. उपेक्षेन्द्रिय। ये पाँच वेदनाएँ कहलाती हैं।

"भिक्षुओ!छह वेदनाएँ कौन सी होती हैं ?
१. चक्षुःसंस्पर्शजा वेदना, २. श्रोत्रसंस्पर्शजा वेदना, ३. प्राणसंस्पर्शजा वेदना, ४. जिह्वासंस्पर्शजा वेदना, ५. कायसंस्पर्शजा वेदना, एवं ६. मन:संस्पर्शजा वेदना। ये छह वेदनाएँ कहलाती हैं।

"भिक्षुओ! अट्ठारह वेदनाएँ कौन सी होती हैं?
छह सौमनस्य के विचार से, छह दौर्मनस्य के विचार से तथा छह उपेक्षा के विचार से, इस तरह (6×3 =18) अट्ठारह वेदनाएँ होती हैं।

"भिक्षुओ ! छत्तीस वेदनाएँ कौन सी होती हैं ?
छह गृहसम्बन्धी सौमनस्य, छह नैष्कर्म्य (त्याग) सम्बन्धी सौमनस्य; छह गृहसम्बन्धी दौर्मनस्य, छह नैष्कर्म्यसम्बन्धी दौर्मनस्य; छह गृहसम्बन्धी उपेक्षा, छह नैष्कर्म्यसम्बन्धी उपेक्षा इस तरह (6×6 =36) भिक्षुओ! ये ही छत्तीस वेदनाएँ कहलाती हैं।

"भिक्षुओ! एक सौ आठ वेदनाएँ कौन सी होती है?
छत्तीस अतीत वेदना, छत्तीस अनागत वेदना तथा छत्तीस प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) वेदना। भिक्षुओ ! ये ही एक सौ आठ वेदनाएँ कहलाती हैं। इस तरह (36×3 =108) "भिक्षुओ! यही है एक सौ आठ वेदनाओं का धर्मोपदेश'।

🌹सीवकसूत्र🌹

🍂विविध वेदनाएँ🍂
एक समय भगवान् (बुद्ध) राजगृह के वेणुवनस्थित कलन्दकनिवाप में साधनाहेतु विराजमान थे। तब मोलिय सीवक नामक परिव्राजक भगवान् के सम्मुख आया।

आकर, कुशलमङ्गल प्रश्नानन्तर भगवान् से यों जिज्ञासा प्रकट करने लगा-"भो, गौतम! कुछ श्रमण ऐसा कहते देखे जाते हैं- 'पुरुष जो कुछ भी सुख, दुःख या अदुःख-असुख वेदना का अनुभव करता है, सभी स्वकृत कर्म के कारण ही'। उन के इस विचार पर आप गौतम का क्या कथन है?"

"सीवक ! यहाँ पित्त के प्रकोप से भी कुछ वेदनाएँ उत्पन्न होती हैं, सीवक ! यह तुम भी जान सकते हो, समस्त संसार भी जानता है कि पित्त के प्रकोप से भी कुछ वेदनाएँ उत्पन्न होती हैं। तब सीवक ! उन लोगों का यह कथन कैसे मान्य हो सकता है कि सभी मान्य वेदनाएँ स्वकृत कर्मविपाक से ही उत्पन्न होती हैं। उनका ऐसा मानना उन के स्वकीय अनुभव के भी विपरीत है, तथा व्यावहारिक मान्यता के भी विरुद्ध है। अत: मेरी दृष्टि में उन लोगों का यह विचार मिथ्या है। (१)

'सीवक ! यहाँ कफ के प्रकोप से भी कुछ वेदनाएँ उत्पन्न होती हैं...पूर्ववत्... । (२)

"सीवक ! यहाँ वायु के प्रकोप से भी कुछ वेदनाएँ उद्धृत होती हैं...पूर्ववत्... । (३)

"सीवक ! यहाँ कुछ वेदनाएँ वातपित्तकफज-सन्निपातज-भी होती हैं...पूर्ववत्... । (४)

"सीवक ! कुछ वेदनाएँ ऋतुविपर्यय से भी उद्धृत होती हैं... पूर्ववत्.... । (५)

"सीवक ! कुछ वेदनाएँ विषम आहार से भी उत्पन्न होती हैं.... पूर्ववत्... । (६)

'सीवक ! कुछ वेदनाएँ उपक्रम (उपायविशेष) से भी उत्पन्न होती हैं.... पूर्ववत्... । (७)

'सीवक ! कुछ वेदनाएँ अवश्य कर्मविपाक से भी उद्भूत होती हैं.... पूर्ववत्... । (८)

१."पित्त, २.कफ, ३.वात, ४.सन्निपात, ५.ऋतुविपर्यय, ६.विषम आहार, ७.उपक्रमविशेष तथा ८.स्वकर्मविपाक से भी ये विविध वेदनाएँ उद्भूत होती हैं"।

'अतः सीवक ! उन श्रमणों की यह मान्यता मिथ्या ही है कि सभी वेदनाएँ केवल स्वकृतकर्मविपाकजन्य ही हैं। ऐसा मैं कहता हूँ। भगवान् का यह वचन सुन कर सीवक भावविभोर होता हुआ यों निवेदन करने लगा - "भो, गोतम !... आज से जीवनपर्यन्त मुझे अपनी शरण में आया उपासक स्वीकार करें।

Premsagar Gavali

This is Premsagar Gavali working as a cyber lawyer in Pune. Mob. 7710932406

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