एक युवा प्रोफेसर समुद्र-यात्रा कर रहा था। वह उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति था। उसके पास बहुत सी उपाधियां थीं, लेकिन जीवन का अनुभव उसे कम था। जहाज के कर्मी दल में एक अनपढ़ बूढ़ा नाविक था। रोज शाम को नाविक युवा प्रोफेसर के कैबिन में आता और विभिन्न विषयों पर उसके भाषण सुनता। नाविक युवा विद्वान की विद्वत्ता से प्रभावित था।
एक शाम नाविक लंबी वार्ता के बाद जैसे ही केबिन छोड़ने वाला था, प्रोफेसर ने उससे पूछा, 'बूढ़े बाबा, क्या तुमने जिओलॉजी (Geology) पढ़ी है?
'यह क्या है, सर?'
'यह भू-विज्ञान है।'
'नहीं सर, मैं कभी स्कूल या कालेज गया ही नहीं, मैने कभी कुछ भी नहीं पढ़ा। मेरे लिए काला अक्षर भैंस बराबर है।'
'बूढ़े, तुमने तो अपना एक-चौथाई जीवन व्यर्थ गंवा दिया।'
बूढ़ा नाविक मुँह लटकाए चला गया।
यदि इतना बड़ा विद्वान ऐसा कहता है तो ठीक ही कहता होगा। सचमुच ही उसने अपना एक-चौथाई जीवन व्यर्थ गंवा दिया।
फिर दूसरे दिन शाम को जैसे ही नाविक केबिन छोड़ने लगा, प्रोफेसर ने उससे पूछा 'बूढ़े, क्या तुमने ओशनोग्राफी (Oceanography)पढ़ी है?'
'यह क्या है, सर?
‘समुद्र-विज्ञान'।
'नहीं सर । मैंने कहा न कि मैंने कभी कुछ नहीं पढ़ा है।'
'बूढ़े, तुमने अपना आधा जीवन बर्बाद कर दिया।'
बूढ़ा कुछ और अधिक मुँह लटकाकर चलता बना। यह विद्वान ठीक ही कहता होगा कि मैंने अपना आधा जीवन बर्बाद कर दिया।
तीसरे दिन शाम को फिर युवा प्रोफेसर ने बूढ़े नाविक से पूछ लिया 'बूढ़े, क्या तुमने, मेटिओरोलॉजी (Meteorology) पढ़ी है ?
'यह क्या है सर? मैंने तो इसका नाम भी नहीं सुना
यह हवा, वर्षा, मौसम का विज्ञान है।'
'नहीं सर! जैसा कि मैंने आपको बताया, न मैं कभी कोई स्कूल गया और न मैंने कभी कुछ पढ़ा।
'जिस धरती पर तुम रहते हो, उसका विज्ञान नहीं पढ़ा; जिस समुद्र से अपनी रोटी कमाते हो, उसका विज्ञान भी नहीं पढ़ा; जिस मौसम से तुम्हारा रोज वास्ता पड़ता है, उसका विज्ञान भी नहीं पढ़ा। बूढ़े, तुमने अपना तीन-चौथाई जीवन बर्बाद कर दिया।' बूढ़ा बहुत दुःखी हुआ। यह विद्वान ठीक ही कहता है मैंने अपना तीन-चौथाई जीवन बर्बाद कर दिया है।
अगले दिन बूढ़े नाविक की बारी थी। वह दौड़ता हुआ युवक के केबिन में घुस आया और चिल्लाया, 'प्रोफेसर साहब! क्या आपने स्विमोलॉजी (Swimology) पढ़ी है?'
'स्विमोलॉजी (Swimology)?
तुम कहना क्या चाहते हो?'
'सर! क्या आप तैर सकते हैं?'
'नहीं, मुझे तैरना नहीं आता।
'तो प्रोफेसर साहब! आपने अपना पूरा जीवन बर्बाद कर दिया । ये जहाज एक चट्टान से टकरा गया है और डूब रहा है। जो तैर सकते हैं वे किनारे पर पहुँच सकते हैं। जो नहीं तैर सकते, वे तो डूब ही जायेंगे।
मुझे बड़ा अफसोस है जनाब प्रोफेसर साहब, आपने सचमुच ही अपना सारा जीवन व्यर्थ खो दिया।'
आप संसार के सारे विज्ञान पढ़ सकते हो, लोकिन अगर स्विमोलॉजी नहीं पढ़ते हो तो आपके सारे विज्ञान किस काम के ।
आप स्वीमिंग पर पुस्तकें पढ़ और लिख सकते हो, इसकी सैद्धांतिक बारीकियों पर बहस कर सकते हो परंतु ये सब ज्ञान-विज्ञान आपकी क्या सहायता करेंगे, यदि आप स्वयं पानी में नहीं उतरेंगे। आपको तैरना तो सीखना ही पड़ेगा!
इस भव-सागर के दुःखों को पार करने के लिए अनमोल विपश्यना विद्या हाथ लगी है, केवल बातों से नहीं होगा, चलना होगा, स्वयं चलना होगा, कदम-कदम चलकर दुःखों का भव-सागर पार होगा ही।
सबका मंगल हो
- सत्य नारायण गोयनका