वंश चलने या न चलने में हमारा कोई हित या अहित नहीं है!

 

हर नारी में मातृत्व की स्वाभाविक ललक रहती ही है। परंतु 

अपने यहां यह सपूती और निपूती का भेद अंतर्मन की गहराइयों

तक भर दिया जाता है जो बड़ा खतरनाक होता है। इस हीन एवं 

कुंठित भावना से मुक्ति पाना कठिन हो जाता है। एशिया में हर 

मां-बाप को पुत्र-प्राप्ति की तीव्र आकांक्षा रहती ही है। भगवान 

बुद्ध का सच्चा धर्म लोगो की समझ में आ जाय और लोग यह ं

जान लें कि कोई दूसरा मुझे तारने वाला नही, भले वह मेरा सगा ं

पुत्र ही क्यों न हो, तो लोगो क्यों के मन से यह भ ं ्रांति निकल जाय। 

“वंश चलने या न चलने में हमारा कोई हित या अहित नहीं

है”—जब तक यह बात लोगो की समझ में न आ जाय तब ं

तक ये हीन ग्रंथियां बनी रहेंगी और वे जाने-अनजाने परिवार 

के कलह का कारण बनती रहेंगी। धर्म बुद्धि गहराई से जागेगी 

तभी पूरी तरह कल्याण होगा।... 

तुम्हारा अनुज 

सत्य नारायण गोयन्का

Premsagar Gavali

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