भिक्षु कौन?



"चरथ, भिक्खवे, चारिकं बहुजनहिताय बहुजनसुखाय अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सानं। देसेथ, भिक्खवे, धम्म आदिकल्याणं मज्झेकल्याणं परियोसानकल्याणं सात्थं सब्यञ्जनं केवलपरिपुण्णं परिसुद्धं ब्रह्मचरियं पकासेथ ।"

- भिक्षुओ! चलते रहो। अनेक लोगों के भले के लिए, अनेक लोगों के सुख के लिए, देव-मनुष्यों के कल्याण के लिए, हित के लिये, सुख के लिए विचरण करते ही रहो। लोगों को धर्म का सदुपदेश दो, भिक्षुओ! ऐसा धर्म जो कि आदि में कल्याणकारी है, मध्य में कल्याणकारी है, अंत में कल्याणकारी है। (सर्वतोमुखी कल्याणकारी ही कल्याणकारी है।) उस धर्म का शब्दों के साथ, अर्थों के साथ, भावों के साथ, व्यावहारिक अभिव्यंजना के साथ प्रकटीकरण करो। ऐसा धर्म जिसमें कि केवलमात्र परिपूर्ण परिशुद्धि ही परिशुद्धि है। अशुद्धि के लिए कहीं कोई स्थान नहीं। ऐसे परम परिशुद्ध ब्रह्माचरण का प्रकाशन करो अपने ब्रह्माचरण द्वारा। ऐसे परम परिशुद्ध धर्माचरण का ज्ञापन करो अपने धर्माचरण द्वारा।
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पुस्तक: धम्मवाणी संग्रह ।
विपश्यना विशोधन विन्यास ॥

भवतु सब्ब मंङ्गलं !!

Premsagar Gavali

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