चले आओ दस दिन, खूब अच्छा उपाय मिलेगा...
प्रश्नः किसी पर क्रोध आ रहा है?
कठोरता का व्यवहार अवश्य करें क्योंकि वह मृदु व्यवहार से समझ नहीं रहा है, कठोर वाणी से ही समझेगा। ऐसे समय भीतर करुणा हो, समता हो, फिर भले खूब कठोर हों तो कोई हानि नहीं होगी।
प्रश्नः मेरे अंदर पुराने कर्मों के कारण भय, क्रोध का भरपूर संचय है। इससे छुटकारा चाहती हूं। क्या करें?
उत्तरः जब-जब भय जागता है तब जिस बात को लेकर भय जागा, उस बात पर ध्यान नहीं देना। इस समय मेरे मन में भय जागा है, इस सच्चाई को स्वीकार करो और भय के साथ-साथ जो भी संवेदना जागी हो, कहीं भी जागी हो, उस संवेदना को देख रहे हैं और भय जागा है, इस सच्चाई को देख रहे हैं। यों देखते-देखते देखेंगे कि भय कम हुए जा रहा है, कम हुए जा रहा है, छुटकारा हो जायगा। भय को जबरदस्ती दूर करने की कोशिश मत करो। उसको साक्षीभाव से जानो- 'भय है। भय के आलंबन पर ध्यान करोगे तो भय बढ़ेगा। आलंबन से कोई लेन-देन नहीं। यह भय है और यह संवेदना है- यों देखना आ गया तो अपने आप दूर होता चला जायगा।
प्रश्नः कभी-कभी शिक्षक होने के नाते राग को बढ़ाना पड़ता है और द्वेष को भी। क्रोध भी करना पड़ता है।
उत्तरः उन्हीं के कल्याण के लिए ही क्रोध आया। हम तो सिखा रहे हैं एक अच्छी बात और वह बच्चा सीख ही नहीं रहा है। हमें क्रोध आया, दो चांटे भी लगाये- ठीक रास्ते चलो। यह रास्ता अच्छा है। लेकिन अगर विपश्यना नहीं कर रहे हो तो देखोगे कि यह करते हुए हमने जो क्रोध जगाया तो अपने आप को दुःखी बनाया और उस क्रोध के साथ जो वाणी हमने कही - भले ही न्यायीकरण तो करते हैं कि हम ऐसा नहीं कहते तो वह समझता ही नहीं।
लेकिन उस वाणी के साथ जो तरंगें गयीं वे तरंगें उसे कहीं भी समझने लायक नहीं बनायेंगी। वह और भी ज्यादा व्याकुल होकर गलत रास्ते जायगा। तो क्या करें? जब क्रोध करना हो - हम इसे क्रोध नहीं कहते, माने जब कठोरता का व्यवहार करना हो; क्योंकि उस बच्चे को मृदु भाषा बहुत कह कर देख चुके, कुछ भी असर नहीं होता उस पर । कठोरता की ही भाषा समझता है, तो पहले अपने भीतर देखेंगे- अंदर समता है न! क्रोध तो नहीं जाग रहा है न! और इसी बच्चे के प्रति करुणा जाग रही है न! और कोई भाषा समझता ही नहीं है यह, तो बड़ी कठोरता से व्यवहार करेंगे- भले ही हाथ भी उठा लें। भीतर तो करुणा ही करुणा है। यह अंतर आयगा । कठोरता की जगह कटुता आ जाती है तो वह अपने लिए भी हानिकारक है, औरों के लिए भी हानिकारक होती है। कठोरता तो हो, बहुत बार जीवन में कठोरता का व्यवहार करना पड़ सकता है, कटुता नहीं आनी चाहिए। यह इस विद्या से सीखेंगे। संवेदना जाग रही है। हमको कुछ करना है, करना है तो भीतर संवेदना क्या है और उस संवेदना से हम नहीं प्रभावित होते। हम तो समता में हैं और यह समझ रहे हैं कि इस व्यक्ति के साथ कठोरता का व्यवहार करना है।
प्रश्नः क्या आशा अभिलाषा विकार है?
उत्तरः सचमुच विकार है अगर उसके प्रति आसक्ति हो । प्रकृति का नियम है - मुझे प्यास लगी है तो पानी चाहिए। तो मेरे मन में पानी की मांग होना दोष की बात नहीं। लेकिन उसी पानी के लिए व्याकुल होऊं- हाय रे, मरा रे; पानी नहीं मिला रे, क्या हो जायगा रे, क्या हो जायगा रे? तो मैंने अपनी समता खो दी। बहुत व्याकुल हो गया। पानी चाहिए। मैंने प्रयत्न किया, प्राप्त नहीं हुआ- फिर मुस्कराया। फिर प्रयत्न किया, नहीं प्राप्त हुआ- फिर मुस्कराया । कोई दोष
की बात नहीं। आसक्त होना दोष की बात है।
प्रश्नः आदमी के अंदर क्रोध क्यों पैदा होता है? क्या विपश्यना से वह कार्य बंद हो जाता है?
उत्तरः यही देखोगे कि क्रोध क्यों पैदा होता है और यह देखना आ जायगा तो उससे छुटकारा पाना भी आ जायगा।
प्रश्नः कृपया क्रोध को काबू में लाने का सुलभ उपाय बताइये।
उत्तरः विपश्यना में यही सीखोगे। चले आओ दस दिन । खूब अच्छा उपाय मिल जायगा।
प्रश्नः पुरानी बातों को लेकर पुराने व्यक्तियों के कारनामे याद आते ही बहुत क्रोध आता है। क्यों?
उत्तरः पुराने संस्कार हैं उन व्यक्तियों को लेकर। वे व्यक्ति तो मर गये, लेकिन तुम्हारा क्रोध नहीं भरा। क्रोध को जगाये हुए हो । क्रोध को मारो। जब-जब क्रोध आता है तब-तब सांस को देखना शुरू कर दो। क्रोध मरने लगेगा। उसके मरने से कल्याण हो जायगा। मुख्य बात है अपने क्रोध को मारो। उसे मारने का एक ही तरीका है कि संवेदना को देखना शुरू कर दो। जो क्रोध आये संवेदना के साथ ही आये। संवेदना को देखते जाओ, देखते जाओ - अनित्य है, अनित्य है, अनित्य है। क्रोध दूर होता चला जायगा। उससे छुटकारा हो जायगा।
प्रश्नः घबराहट बहुत होती है। थोड़ी भी आवाज हुई तो एकदम चौंक जाता हूं। कल्पनाएं बहुत आती हैं। बिल्कुल चैन नहीं पड़ती।
उत्तरः ऐसी अवस्था में आनापान ज्यादा करो। शरीर को ढीला करके लिटा दो, बहुत ढीला करो। सांस पर, धीमे सांस पर, हथेली पर, पगथली पर ध्यान करो। जो घबराहट उठी है उसके निकलने का रास्ता मिल जायगा। शांत हो जायगा मन । उसके बाद विपश्यना ठीक होने लगेगी।
खुब सुखी हो, कल्याण हो, मंगल हो
पुस्तक : विपश्यना लोकमत (भाग-1)
विपश्यना विशोधन विन्यास ।।
भवतु सब्ब मगंलं !!