मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में में विपश्यना की भूमिका - डॉ. आर. एम. चोखानी

 यह पत्र धम्मगिरि पर 1986 ई. में आयोजित विपश्यना सेमिनार में उपस्थापित किया गया।



चित्त या मन को नियंत्रित करने की जो पारंपरिक विधियां हैं उनका एक आधुनिक रूपान्तरण विपश्यना ध्यान विधि है जो आम जनता तथा मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करने वालों में बहुत ही लोकप्रिय है
. विपस्सना पालि भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है 'प्रज्ञा' या अन्तर्ज्ञान। यह आत्मपर्यवेक्षण से आत्मरूपान्तरण की प्रणाली है। इसका उद्देश्य है अंततः मानसिक संतुलन तथा समता प्राप्त करना (थ्रे सिदु सयाजी ऊ बा खिन, 1963) और अपने तथा औरों के लिए ऐसा जीवन जीना जो सबों के लिए लाभदायक हो (स. ना. गोयन्का, 1990)
आत्ममुक्ति के लिए ध्यान का अभ्यास विभिन्न संस्कृतियों में अपने अध्यात्म के संदर्भ में धार्मिक समूहों के सदस्यों द्वारा अपने समूह के सदस्यों के लिए विकसित किया गया । बुद्ध की शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रणाली के साथ-साथ एक ब्रह्मांड विज्ञान है ( कुटज. 1, बोरिसेंको जे. जे. एण्ड वेनसन एच 1985)। इसे अभिधम्म कहा जाता है जो बहुत ही सुव्यवस्थित किंतु जटिल तरीके से व्याख्यायित है। इसमें मानसिक व्यापार क्रिया को समझने के लिए एक प्रत्यय समूह का उपस्थापन किया गया है तथा मानसिक विकार को ठीक करने का तरीका भी है जो आधुनिक मनश्चिकित्साओं के दृष्टिकोण से एकदम भिन्न है (गोलमैन. डी. 1977)
मन का अभिधम्म मॉडेलः
मानसिक क्रिया का नमूना मोटे तौर पर 'वस्तु संबंध' का सिद्धांत है, इसकी मूल गतिशीलता संवेदी वस्तुओं के साथ मानसिक अवस्थाओं का नित नवीन सबंध होना है। पांच इन्द्रियां अपने-अपने विषयों को जैसे रूप, शब्द आदि जानती हैं और छठे इन्द्रिय धर्म को जानती है। मानसिक अवस्थाएं या चित्त सतत परिवर्तनशील है।
इस विश्लेषण में मानसिक अवस्था की सबसे छोटी इकाई चित्तक्षण का जो बोध या ज्ञान का क्षण है परिवर्तन दर अविश्वनीय रूप से तेज है, इतनी तेज कि जितनी देर में बिजली कौंधे, उतनी देर में वह दस लाख बार उत्पन्न होती है।
हर एक के बाद दूसरा उत्पन्न होने वाला चित्त कछ विशेष गुणों से बना होता है। चित्त में चैतसिक होते हैं जो उसे सुस्पष्ट प्रत्यक्षज्ञानात्मक लक्षण प्रदान करते हैं। इन गुणों की 52 मूल संज्ञानात्मक और भावात्मक श्रेणियां हैं (नारद थेर, 1968) चैतसिकों को मूलतः कुशल और अकुशल दो भागों में बाँटा जाता है। ठीक जैसे सिस्टेमिक डिसेन्सीटाईजेशन में, जहां तनाव इसके शारीरिक प्रतिपक्ष विश्राम द्वारा दूर किया जाता है, स्वस्थ स्थितियां अस्वस्थ स्थितियों की विरोधी हैं और उन्हें रोकती हैं। विपश्यना का उद्देश्य अस्वस्थ गुणों को, विकारों को मन से निर्मूल करना है। मानसिक स्वास्थ्य की ऑपरेशनल परिभाषा उनका सर्वथा अभाव होना है, जैसा अर्हत में होता है (गोलमैन. डी. 1977) (इसकी)
प्रक्रिया तथा मनोवैज्ञानिक प्रभावः
“जो भी धर्म मन में उत्पन्न होता है उसके साथ-साथ शरीर में संवेदना होती है।” बुद्ध ने कहा वेदना समोसरणा सब्बेधम्मा | मन और शरीर का यह संबंध ही विपश्यना साधना के अभ्यास की कुंजी है। विपश्यना एकाग्र मन को प्रशिक्षित करती है ताकि वह निरपेक्ष भाव से अर्थात उपेक्षा भाव से शरीर पर होने वाली संवेदनाओं का आधार लेकर मेंटल प्रोसेसिंग मेकेनिक्स का अनुगमन करे। किसी दर्शक का यह परिप्रेक्ष्य मन में अतीत तथा भविष्य में होने वाले धर्म जैसे राग और द्वेष को नियंत्रित मुक्ति की अनुमति देता है जो स्मृति 'इच्छा' विचार, वार्तालाप, दृश्य, इच्छाएं भय तथा आसक्ति के अंतहीन प्रवाह के रूप में प्रकट होते हैं। मन के धरातल पर हजारों हजार हर प्रकार के राग द्वारा प्रेरित दृश्य उभरते हैं और बिना प्रतिक्रिया जगाये समाप्त हो जाते हैं और साथ ही उस व्यक्ति को वर्तमान की सच्चाई में स्थिर किये रहते हैं। (फ्लेशमेन. पी. डी. 1986)
ध्यान मन की कंडीशनिंग क्रिया को बदल करके डीकंडीशन करता है ताकि यह भविष्य के कर्मों का प्रधान निर्धारक नहीं हो (गोलमैन डी. 1977)
स्मृति का परिष्करण होता है और जीवन में जो भी स्थितियां आती हैं उनका जान-बूझ कर सामना किया जाता है। इस तरह जो सीमाएं हैं और जो परिस्थितियों की प्रतिक्रिया करके बनी थीं, उनसे मुक्त होता है। जीवन में अधिक मात्रा में जागरूकता आती है, सच्चाई को जानने लगता है तथा माया को दूर करता है। आत्म संयम और शांति बढ़ जाती है (फ्लेशमेन पी. 1986) ऐसा व्यक्ति शीघ्र निर्णय लेने के योग्य बनता है वह निर्णय जो ठीक और सही होगा और वह संगठित प्रयत्न कर सकता है जो मानसिक योग्यताओं को बढ़ा आधुनिक जीवन में सफलता प्राप्त करने में सहायता करेगी।
विपश्यना, स्वास्थ्य और डॉक्टरः अनुसंधान पुनर्विलोकनः
बहुत से आंकड़े (डाटा) प्राप्त हैं, जिनसे प्रमाणित हो जाता है कि विपश्यना ध्यान के अभ्यास से बहुत प्रकार के जैव मनोसामाजिक लाभ मिलते हैं। इससे विपश्यना की चिकित्सकीय अंतःशक्ति कितनी है- इसका भी पता चलता है। उदाहरणार्थ बहुत से रोगियों की रिपोर्टों का अध्ययन किया गया है जो विपश्यना के सकारात्मक प्रभावों को बताते हैं। ये परिणाम विभिन्न क्षेत्रों में पाये जाते हैं जैसे मनोकायिक रोगों में जैसे- पुराना दर्द, सर दर्द, उच्च रक्तचाप, पेपटिक अल्सर, सरदर्द, bronchial asthma (श्वसनी दमा), खाज आदि और ऐसा ही भिन्न-भिन्न मानसिक रोगों में जैसे शराब पीने की आदत या नशे की गोली संवेदन भेदक दवाओं का आदी। इसका अच्छा प्रभाव मानसिक रोगों पर भी पड़ता है जिसमें शराब तथा ड्रग के आदी लोग सम्मिलित हैं। विपस्सना का अच्छा प्रभाव विशेष समूहों में भी देखा गया जैसे- विद्यार्थी, कैदी, पुलिस विभाग के कर्मचारी और वैसे व्यक्ति जो पुराने दर्द तथा अन्य मानसिक रोगों से पीड़ित हैं—
जो भी हो, रोग से मुक्ति नहीं, बल्कि मानवीय दुःख का आवश्यक उपचार हो- यही विपश्यना का उद्देश्य है। दुःख का स्रोत है अविद्या अर्थात अपने सच्चे स्वभाव को न जानना। प्रज्ञा- आनुभूतिक स्तर पर सच्चाई का ज्ञान ही किसी को मुक्त कर सकती है (फ्लेशमेन पी. 1997) 'स्वयं को जानो'- सभी ज्ञानी जनों ने कहा है। विपश्यना अपने मन और शरीर की सच्चाई को जानने का एक व्यावहारिक रास्ता है।
काया तथा मन में गहरी दबी उन समस्यायों का पता लगाने तथा उनसे मुक्त होने की जो अप्रयुक्त अन्तःशक्ति है, उसको विकसित करना है एवं अपने लिए तथा अन्यों के लिए इसको उचित माध्यम बनाना ही विपश्यना है।
उपचार की आवश्यकता सबको है, सबसे अधिक आवश्यकता तो स्वयं डॉक्टरों को है। 'डॉ. अपना उपचार आप करो'- यह एक प्रसिद्ध कहावत है। फ्रायड एवं जुंग ने इस बात पर जोर दिया था कि विश्लेषण करने वाले को अपना विश्लेषण स्वयं करना चाहिए। जो कोमलता और करुणा किसी उपचार करने वाले को जीवन पर्यंत उपचार करने के पथ पर लाती है, जिसका मानवीय दुःखों से सतत पाला पड़ता है, वे उसे अपना इलाज करने को आवश्यक बनाती है। विपश्यना विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों को स्वीकार्य है तथा प्रासंगिक है क्योंकि यह हठधर्मिता से मुक्त है, अनुभव पर आधारित है, इसका केंद्र बिन्दु मानवीय दु:ख तथा इससे छुटकारा पाना है। इसके अभ्यास से, चिकित्सक अपनी स्वायत्तता तथा आत्मज्ञान को बढ़ाते हैं, साथ ही साथ वे अन्यों के लिए उनके जीवन के शोरगुल में उनकी योग्यता की वृद्धि करने में सहारा बनते हैं। विपश्यना वस्तुतः सभी प्रकार के उपचारों जिनमें आत्मोपचार तथा अन्य उपचार भी शामिल हैं, का मार्ग है (फ्लेशमेन 1991)
हम लोग पाते हैं कि अधिकतर आनुभविक शोध का संबंध इस बात को देखना है कि स्वतः नियामक योजना के रूप में विपश्यना ध्यान शारीरिक तथा आचरणिक उपायों के प्रयोग से संबंधित है।
विपश्यना के चिर प्रतिष्ठित परिप्रेक्ष्य पर भी ध्यान देना आवश्यक है जो ध्यान द्वारा चित्त की बदली हुयी अवस्थाओं की घटना क्रिया का वैज्ञानिक पहलू है।
रोगविषयक प्रयोग के लिए नमूनाः
विपश्यना ध्यान की रोग विषयक उपयोगिता अधिकांशत: इस बात से संबंधित है कि वह किसी विशेष समस्या का समाधान न होकर सकारात्मक मानसिक अवस्थाएं विकसित करने के लिए साधारण मनोवैज्ञानिक ढांचा का प्रबंध करे। साधारणतया परंपरागत मनश्चिकित्साओं का सहारा किसी विशेष समस्या को दूर करने के लिए लिया जाता है। फिर भी लेखक एक संज्ञानात्मक (कॉगनिटिव) चिकित्सकीय प्रविधि का प्रयोग कर रहा है जो विपश्यना ध्यान से व्युत्पन्न है और जो अनुपूरक चिकित्सा के रूप में काम में लाया जाता है। लेखक ने तनाव प्रबंधन तथा भय और फोबिया को कम करने में इसे प्रभावी पाया है।
यह ध्यातव्य है कि चिकित्सक को विपश्यना ध्यान विधि से पूर्ण परिचित होना चाहिए और उसे स्वयं एक परिपक्व साधक होना चाहिए। विपश्यना की भाषा में कहें तो रोगी आनापान का अभ्यास करता है जबकि डॉक्टर मेत्ता ध्यान करता है।
औपचारिक चिकित्सा प्रारंभ करने के पूर्व चिकित्सक रोगी को विपश्यना के संभावित लाभ के बारे में विशेषकर विश्राम के बारे में बताता है। इससे यह होता है कि रोगी का भय कम हो जाता है और यह उसे उपचार में सक्रियता से भाग लेने तथा चिकित्सक को सहयोग देने के योग्य बनाता है। इसके अतिरिक्त इस बात को सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि विश्राम के लिए जो भौतिक वातावरण चाहिए वह वहां मिले अर्थात विपश्यना केंद्र पर जैसा वातावरण मिले, उसका कमरा भी शांत हो, आने-जाने वाले लोग कम हों और रोगी का विछावन पर्याप्त आरामदायक होना चाहिए।
रोगी को आराम से विछावन पर लेट जाने के लिए कहा जाता है, आंख मूंद कर आने-जाने वाली सास को ऊपर वाले ओठ के ऊपर और नासिका के नीचे छोटे से स्थान पर एकाग्रचित्त हो देखने के लिए कहा जाता है। सांस जैसी है उसी को देखना है, अंदर आती हुई सांस को. बाहर जाती सांस को। गहरी सांस हो या उथली, तेज सांस हो या धीमा; स्वाभाविक सांस को, सिर्फ सांस को देखने को कहा जाता है। जब उसका मन भागता है, उसे कहा जाता है कि वह फिर से उसी स्थान पर आती-जाती सांस को बार-बार देखे, बिना इस बात पर पश्चात्ताप किये कि उसका मन भाग गया था। मन भाग गया- इस बात से न तो वह घबड़ाये और न ही परेशान हो।
दो बातें घटती हैं- पहली उसका मन आतीजाती सांस पर एकाग्र हो जाता है और दूसरी वह इस बात से अवगत हो जाता है कि मानसिक अवस्था और सांस में संबंध है। मन में चाहे कुछ भी हो- क्रोध, घृणा, भय, राग आदि । सांस की जो प्राकृतिक गति है वह इनमें से किसी के होने पर अस्वाभाविक हो जाती है। वह तब सिर्फ अपने को पर्यवेक्षण करते हुए जागरूक रहता है, स्मृतिमान, सावधान और तटस्थ रहता है।
रोगी को स्वयं इस विधि का अभ्यास करने के लिए कहा जाता है, कम से कम दो बार दिन में सुबह और शाम कम से कम 30 मिनट के लिए। चिकित्सक रोगी को समय-समय पर जांच करता है और साथ ही साथ सलाह भी देता है और दसदिवसीय विपश्यना शिविर में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है। रोगी को इस प्रकार उत्साहित किया जाता है, अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए प्रयास करने को कहा जाता है और इस तरह उसको यह बताया जाता है कि वह स्वयं अपने स्वास्थ्य तथा अपने कल्याण के लिए जिम्मेवार बने।
उपसंहारः
मेरा यह दावा है कि यह विधि उपचार के समय को कम करती है और यह रोगी को समाज का अच्छी तरह से सामना करने के लिए एक पैटर्न ऑफ जेनरल स्ट्रेस रिस्पॉन्सॅबिलिटि देती है जो स्पेसीफिक ऑभर लर्नेड मेलएडेप्टिम रेसपोन्सेज को उत्पन्न करने की संभावना कम करती है चाहे वह प्रतिक्रिया मनोवैज्ञानिक हो या शारीरिक । इसके अतिरिक्त रोगी की आंतरिक अवस्था में परिवर्तन होता है जिससे उसका ध्यान केंद्रित होता है, उसकी बोधात्मक और प्रेरक प्रणाली आदर्श रूप में कार्य करती है और उसकी चिंता कम हो जाती है। इसके बावजूद यह होता है कि उसे बाह्य वातावरण से परिवर्तन होते रहने वाली मांग आती हैं, और यह वह करता है आत्म नियंत्रण से तथा विपश्यना ध्यान से आंतरिक क्षमता को विकसित करके।
अनेक प्रकार की मानसिक बीमारियों को रोकने तथा ठकि करने में इस विधि के महत्त्व तथा इसकी सीमा को अध्ययन करने में सोफिस्टिकेटेड एक्सपेरीमेन्टल डिजायन्स से मल्टिसेंटर्ड क्लिनिकल परीक्षण हमें सहायता करेगा। इस बात को भी यहां स्पष्ट करना चाहिए कि कौन रोगी किस क्लिनिकल प्रोब्लम वाला विपश्यना ध्यान से लाभान्वित होगा, विपश्यना ध्यान जो उसके च्वायस की विधि है विस-एविस अन्य सेल्फ रेगुलेशन स्ट्रेटेजी उदाहरण स्वरूप वायोफीड बेक, हिप्नोसिस, प्रोग्रेसिभ रिलेक्सेसन आदि।

Premsagar Gavali

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