अगर गर्भवती महिला विपशयना करती है तो वह अकेली नहीं करती ।इस धर्म का बीज बच्चे में भी जाएगा ।विपशयना का चमत्कारिक प्रभाव न केवल गर्भवती माँ पर पड़ता है बल्कि आने वाले बच्चे पर भी इसका असर पड़ता है ।माँ के उदर में भावी शिशु का निर्माण होता है ।
विदेशो में इसके महत्व को इतना समझने लगे है की वहां गर्भवती महिलाये शिविर में आती है और कहती है हमें अपने बेबी को धम्म बेबी बनाना है ।धम्म बेबी तो धम्म बेबी ही होता है ।
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Que : बच्चों को धर्म सिखाने के बारे में आपका क्या विचार है ?
Ans : इसके लिये सबसे अच्छा समय जन्म के पूर्व का है!
गर्भावस्था( pregnancy) में माँ को विपश्यना का अभ्यास करना चाहिये जिससे की बच्चा भी इसे ग्रहण करे और एक धम्म शिशु के रूप में उसका जन्म हो।
लेकिन यदि आपके बच्चे पहले से ही है तो उनको आप धर्म की बाते बता सकती हैं।
प्रत्येक साधना के अंत में और सोते समय बच्चों को मैत्री दें।
यदि वे बड़े हैं तो उन्हें ध्यान के बारे में थोडा बहुत इस ढंग से समझाएं की वे इसे समझ सकें और स्वीकार कर सकें।
यदि वे कुछ अधिक समझ सकते हैं तो कुछ मिनिट के लिये उन्हें आनापान करना सिखाइये।
किसी भी रूप में बच्चों पर दबाव मत डालिये।
बस उन्हें अपने साथ कुछ मिनट के लिये बैठने और सांस को देखने दीजिये, फिर उन्हें जाने और खेलने दीजिये। तब ध्यान उनके लिये खेल की तरह होगा और इसे करने में उन्हें आनंद आएगा।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की आपको एक स्वस्थ धर्म का जीवन व्यतीत करना चाहिये और अपने बच्चों के लिए एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिये।
अपने घर में आपको शांत तथा समरसता पूर्ण वातावरण का निर्माण करना चाहिये जो उन्हें स्वस्थ और सुखी व्यक्ति के रूप में बढ़ने में सहायक होगा।
यह सबसे अच्छी चीज है जो आप अपने बच्चों के लिये कर सकती हैं।
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गुरूजी--गर्भवती साधिका की अधिक जिम्मेदारी होती है- अपने प्रति एवं आने वाले बच्चे के प्रति।
यदि वह बच्चे को अच्छी तरंगे देंगी तो बच्चे का भावी जीवन शांतिपूर्ण होगा।सारा जीवन उत्तम होगा।
अतः ध्यान करो। इन महीनो का उपयोग कुछ और करने के बजाय ध्यान में करो।दूसरी चेष्टाओं में मत लगो, ध्यान को अधिक समय दो।