नखशिखसूत्र : अप्रमत्त (सावधान) रहते हुए साधना करना



श्रावस्ती में साधना के समय.... । तब भगवान् ने अपने नख के अग्र भाग (शिखा) पर थोड़ा सा रज:कण (धूल) लगा कर भिक्षुओं से पूछा- "तो क्या मानते हो, भिक्षुओ! यह जो मेरे नख के अग्रभाग पर जो धूल लगी हुई है वह अधिक है? या यह महापृथ्वी?"

"भन्ते ! यह महापृथ्वी ही अधिक है। आप के नखाग्र भाग पर लगी धूल तो उसकी अपेक्षा बहुत अल्प है। यह अल्प सा रजःकण इस महापृथ्वी के किसी भी भाग (कला) में समानता नहीं करता।"

"भिक्षुओ! वैसे ही वे प्राणी भी बहुत अल्प हैं जो इस मानवयोनि में जन्म लेते हैं। इसलिये, भिक्षुओ! तुम्हें भी यह शिक्षा ग्रहण करनी चाहिये- "हम अप्रमत्त हो कर साधना करेंगे।" भिक्षुओ! इस प्रकार तुम्हें सीखना चाहिये॥
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🌹 कूटसूत्र 🌹

🍂अकुशल धर्म अविद्यामूलक🍂

ऐसा मैंने सुना है। एक समय भगवान् (बुद्ध) श्रावस्ती में....पूर्ववत्....यों बोले- "भिक्षुओ! जैसे किसी शिखर वाले भवन के सभी शिखर उसी भवन पर आधृत हैं, उसी के सहारे से हैं, उसी पर उठे हुए हैं, उस के खड़े रहने से वे खड़े हुए दिखायी देते हैं। इसी तरह, भिक्षुओ! ये जितने भी अकुशल धर्म हैं वे सभी अविद्यामूलक हैं, अविद्या पर आधृत हैं, अविद्या के सहारे खड़े हैं। इसलिये,भिक्षुओ! तुम्हें इस उदाहरण
से यह शिक्षा लेनी चाहिये-'हम अप्रमत्त (सावधान) रहते हुए साधनारत रहेंगे।'- ऐसा तुम्हें सीखना चाहिये।

ओपम्मसयुंत्त।
संयुक्तनिकाय ।।

Premsagar Gavali

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