साकेतसूत्र : इन्द्रियाँ ही बल हैं|




ऐसा मैने सुना। एक समय भगवान् (बुद्ध) साकेत प्रदेश के अञ्जनवन मृगदाव में साधनाहेतु विराजमान थे। वहाँ भगवान् ने भिक्षुओं को यों उपदेश किया-

"भिक्षुओ ! क्या कोई ऐसी पद्धति है जिस से पाँच इन्द्रियाँ पाँच बल हो जाती हों, या फिर पाँच बल पाँच इन्द्रियाँ हो जाते हों?"
"भन्ते! धर्म के विश्रूषण में हम आप को ही प्रमाण मानते हैं...आप जैसा बतायेंगे वैसे ही उसे हम शिरोधार्य कर लेंगे।"

"तो भिक्षुओ ! सुनो। ऐसी भी एक पद्धति है जिस के सहारे से पाँच इन्द्रियाँ पाँच बल या फिर पाँच बल पाँच इन्द्रियाँ हो जाते हैं। भिक्षुओ! वह पद्धति कौन सी है जिस के सहारे से... ?

भिक्षुओ! वह पद्धति यह है-
जो श्रद्धेन्द्रिय है वही श्रद्धाबल है, तथा जो श्रद्धाबल है वही श्रद्धेन्द्रिय है।

इसी तरह, जो वीर्येन्द्रिय है वही वीर्यबल है, तथा जो
वीर्यबल है वही वीर्येन्द्रिय है।

इसी तरह, जो स्मृतीन्द्रिय है वही स्मृतिबल है, तथा जो स्मृतिबल है वही स्मृतीन्द्रिय है।

इसी तरह, जो समाधीन्द्रिय है वही समाधिबल है, तथा जो समाधिबल है वही समाधीन्द्रिय है।

इसी तरह जो प्रज्ञेन्द्रिय है वही प्रज्ञाबल है, तथा जो प्रज्ञाबल है वही प्रज्ञेन्द्रिय है।

भिक्षुओ !
जैसे कोई पूर्व दिशा की ओर बहने वाली पूर्व दिशा की ओर झुकी हुई नदी हो। उस के बीच में कोई द्वीप हो। तो वहाँ ऐसी कोई पद्धति है जिस से उस नदी की धारा एक ही समझी जा सकती है; तथा दूसरी पद्धति से उसी धारा को दो समझा जा सकता है।

भिक्षुओ ! वह पहली पद्धति कौन सी है जिस से नदी की समस्त धारा को एक ही समझा जाय? भिक्षुओ! द्वीप के आगे एवं पीछे का जल एक ही धारा बनाते हैं, अत: इस पद्धति से वह धारा एक ही समझी जाती है।

"तब, भिक्षुओ! दूसरी पद्धति कौन सी है जिस से उस नदी की दो धारा समझी जायँ ? भिक्षुओ! द्वीप के उत्तर तथा दक्षिण दिशा का जल- ये दोनों पृथक् पृथक् समझे जाने से 'उस नदी की दो धाराएँ हैं'- ऐसा भी कहा जा सकता है।

इसी तरह, भिक्षुओ! जो श्रद्धेन्द्रिय है वही श्रद्धाबल है, तथा जो श्रद्धाबल है वही श्रद्धेन्द्रिय है।
...पूर्ववत्...। जो प्रज्ञेन्द्रिय है वही प्रज्ञाबल है, तथा जो प्रज्ञाबल है वही प्रज्ञेन्द्रिय है।

भिक्षुओ! इन पाँचों इन्द्रियों की भावना एवं अभ्यास के सहारे से आश्रवों का क्षय कर, अनाश्रव चेतोविमुक्ति को प्रज्ञाविमुक्ति को भिक्षु इसी जीवन में स्वयं जान कर, उस का साक्षात्कार कर, प्राप्त कर साधना कर सकता है"।

साकेतसूत्र समाप्त।
संयुक्तनिकाय ।।

Premsagar Gavali

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