मैत्री-भावना - मंगल-मैत्री की साधना


*💐यह “मंगल-मैत्री” की*
*साधना है इसे “पुण्य-वितरण” की साधना भी कहते हैं. जब भी कोई साधक धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ता है, तो दो-चार बातें अनुभूतियों से स्पष्ट हो जाती है. एक तो यह कि मै जब-जब मन में विकार जगाता हूँ, तब-तब बड़ा व्याकुल हो जाता हूँ और ये व्याकुलता अपने तक सीमित न रखकर औरों को भी बांटता हूँ सारे वातावरण को और जो मेरे संपर्क में आये उसको व्याकुल बना देता हूँ. जीवन भर स्वयं भी दुखी रहा औरों को भी दुखी बनाया. इसका प्रमुख कारण मेरी (मेरे अहंकार के प्रति) आसक्ति है.*
*🌹साधना करने पर अहंकार थोडा-थोडा पिघलता है, चित्त का मैल थोडा-थोडा उतरता है, चित्त में थोड़ी-भी निर्मलता आती है तो औरों के प्रति प्यार उमड़ता है, अपना अहंकार जो टूटता है. भीतर से थोड़ी-सी भी सुख शांति महसूस होती है, तो जी चाहता है कि अपना यह सुख औरों को भी बांटू, मेरी सुख शांति में सभी भागिदार हों, जो पुण्य हासिल किया है उसका वितरण करूँ, ऐसा औरों के प्रति मंगल-भाव जागता जागता है, मैत्री जागती है, करुणा जागती है.*
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*💐प्राणी जगत का सर्वोच्च प्राणी ब्रह्मा सदैव अनन्त मैत्री में विहार करता है, अनन्त करुणा में विहार करता है,अनन्त मुदिता में विहार करता है, अनन्त उपेक्षा (समता-भाव) में विहार करता है. यह उसका स्वभाव है. इसलिए इन चारों को ब्रह्मविहार कहते हैं. सभी मनुष्यों के भीतर भी ये सद्गुण समाये हुए हैं, लेकिन वे विकसित नहीं हुए हैं, बीजरूप में समाये हुए हैं.ये विकसित इस कारण नहीं होते, क्योंकि चित्त पर मैल की परतें पड़ी हुयी है. साधना करने से मैल की परत पर परत उतरती जाती है, मैल उतरते उतरते एक समय ऐसा भी आएगा कि गहराई में मोटी-मोटी चट्टानों की तरह चढ़ा हुआ मैल भी टूटता जाएगा – तब भीतर से प्यार का एक झरना फूटेगा और इसी प्रेम के स्फुरण से प्रतिक्षण ‘मैत्री ही मैत्री’ ‘करुणा ही करुणा’ जागेगी. इस स्फुरण को*
*इन्हीं तरंगों को - पुलक-रोमांच को - प्यार के भावों से - मंगल के भावों से भरेंगे*
*सब का मंगल हो*– *💐सब का कल्याण*
*हो–सारे प्राणी सुखी*
*हों–विकारों से मुक्त हों. सारे प्राणी – दृश्य हों, अदृश्य हों, मनुष्य हों, मनुष्येत्तर हों सब का मंगल हो, कल्याण हो - इन भावों से - इन तरंगों से अपने मानस को भर लेंगे.*
*साधक देखेगा की सारा शरीर तरंगों से, पुलक रोमांच से भरने लगा, और जल्दी ही ऐसी स्थिति भी आएगी कि ये तरंगें शरीर की सीमा तक ही सीमित नहीं रहेगी. शरीर के पोर-पोर से तरंगे फूटेंगी और आस-पास के वातावरण में व्याप्त हो जाएगी. ऐसे वातावरण में व्याकुल व्यक्ति भी शांति महसूस करेगा.*
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*💐कोई परिवार इतना भाग्यशाली हो जिसके सभी सदस्य सामूहिक साधना कर “मंगल मैत्री” का अभ्यास करते हों, तो बड़ा कल्याण होगा. जीवन के मार्ग में चलते-चलते परस्पर मनमुटाव भी हो ही जाता है, मैत्री के अभ्यास से उठेंगे तो सारा मनोमालिन्य धुल जाता है – वैरभाव दूर हो जाता है. प्यार ही प्यार उमड़ता है – ऐसे घरों में सही मायने में देवता रमण करते हैं.*

Premsagar Gavali

This is Premsagar Gavali working as a cyber lawyer in Pune. Mob. 7710932406

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